Sunday, June 22, 2025
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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का बड़ा बयान: “संसद सर्वोच्च है, सांसद ही संविधान के अंतिम स्वामी हैं”

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित एक शैक्षणिक कार्यक्रम के दौरान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका की बढ़ती सक्रियता पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि भारत में संसद ही सर्वोच्च संस्था है और सांसद संविधान के अंतिम मालिक हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा, “उनसे ऊपर कोई भी प्राधिकारी नहीं हो सकता, चाहे वह कोई भी संस्था हो।”

धनखड़ ने 1977 की घटनाओं का हवाला देते हुए कहा कि “एक प्रधानमंत्री जिसने आपातकाल लगाया था, उसे भी जनता ने जवाबदेह ठहराया। इससे स्पष्ट है कि भारत का संविधान जनता के लिए है और इसे संसद ही सुरक्षित रखती है।”

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सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र पर फिर उठे सवाल

यह पहली बार नहीं है जब उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी की हो। हाल ही में तमिलनाडु विधानसभा से पारित कई विधेयकों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों पर उन्होंने कहा था कि “अगर अदालत राष्ट्रपति को निर्देश देने लगे, तो यह चिंताजनक स्थिति है। क्या अब अदालत संसद भी चलाएगी?”

धनखड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि अगर राष्ट्रपति विधेयकों पर तय समयसीमा में फैसला नहीं लेते, तो वे विधेयक अपने आप लागू माने जाएंगे। उन्होंने इसे न्यायपालिका का विधायिका पर अतिक्रमण बताया।

संविधान के अनुच्छेद 142 पर चिंता

उपराष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 142 का उल्लेख करते हुए कहा कि “अब अदालत के हाथ परमाणु शक्ति लग गई है।” उन्होंने कहा कि इस अनुच्छेद के तहत सुप्रीम कोर्ट जनहित में कोई भी आदेश दे सकता है जो संपूर्ण देश पर लागू होता है, लेकिन इसके इस्तेमाल की सीमाएं भी तय होनी चाहिए।

निशिकांत दुबे की टिप्पणी से गरमाया माहौल

इस पूरे विवाद को और हवा तब मिली जब भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर कड़ी आलोचना करते हुए कहा, “अगर सुप्रीम कोर्ट ही सर्वोच्च है, तो संसद को बंद कर देना चाहिए।” उनकी इस टिप्पणी के बाद राजनीतिक गलियारों में नई बहस शुरू हो गई है।

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संविधान के ढांचे पर बहस: संसद बनाम न्यायपालिका

धनखड़ के वक्तव्य और दुबे की टिप्पणी ने देश में एक बार फिर संसद और न्यायपालिका के अधिकारों की सीमाओं पर बहस छेड़ दी है। एक ओर संविधान का संरक्षण न्यायपालिका के जिम्मे है, वहीं धनखड़ के अनुसार, संसद की सर्वोच्चता पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता।

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