नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के मदरसों में कामिल (स्नातक) और फाजिल (स्नातकोत्तर) पाठ्यक्रम की पढ़ाई कर रहे हजारों छात्रों के भविष्य को लेकर अनिश्चितता गहरा गई है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। यह नोटिस टीचर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया द्वारा दायर एक याचिका पर प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई, अगस्टिन जॉर्ज मसीह और ए एस चंदुरकर की पीठ ने 30 मई को सुनवाई के बाद जारी किया।
डिग्री देने के अधिकार का विवाद
टीचर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया ने अपनी याचिका में सर्वोच्च न्यायालय से यह निर्देश देने की मांग की है कि राज्य सरकार ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती लैंग्वेज यूनिवर्सिटी, लखनऊ को उत्तर प्रदेश के मान्यता प्राप्त मदरसों में कामिल और फाजिल की पढ़ाई कर रहे छात्रों की परीक्षा आयोजित करने और उन्हें डिग्री प्रदान करने के लिए अधिकृत करे। याचिका में यह भी अनुरोध किया गया है कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती लैंग्वेज यूनिवर्सिटी को यूजीसी अधिनियम की धारा 22 के अनुसार कामिल और फाजिल की परीक्षाएं आयोजित करने, परिणाम घोषित करने और डिग्री जारी करने का निर्देश दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसले का प्रभाव
यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के पिछले वर्ष अंजुम कादरी मामले में दिए गए फैसले का हवाला देती है। उस फैसले में, सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट को वैध ठहराया था और यह माना था कि यह अधिनियम मदरसा शिक्षा को नियमित करता है। हालांकि, उसी फैसले में कोर्ट ने यह स्पष्ट किया था कि मदरसों को कामिल और फाजिल की डिग्री देने का अधिकार नहीं है, क्योंकि कोर्ट ने मदरसों द्वारा दी जाने वाली कामिल-फाजिल डिग्री को यूजीसी अधिनियम का उल्लंघन मानते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया था।
50,000 छात्रों का भविष्य दांव पर
याचिका में बताया गया है कि अंजुम कादरी के फैसले के आधार पर, मदरसा एजुकेशन बोर्ड के रजिस्ट्रार ने 16 जनवरी 2025 को उत्तर प्रदेश के सभी जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारियों को एक पत्र भेजा था। इस पत्र में कहा गया था कि पूरे राज्य में किसी भी मदरसे को कामिल और फाजिल पाठ्यक्रम पढ़ाने का अधिकार नहीं है और मदरसा एजुकेशन बोर्ड को कामिल और फाजिल की डिग्री देने का अधिकार नहीं है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि वर्तमान में लगभग 50,000 छात्र पूरे राज्य में कामिल और फाजिल की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, और कुछ छात्र आलिम (सीनियर सेकेंडरी) की शिक्षा भी ले रहे हैं। इस पत्र के कारण इन सभी छात्रों में अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न हो गई है। उनके भविष्य पर प्रश्नचिह्न लग गया है, और याचिका में यह तर्क दिया गया है कि यह स्थिति संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(जी), 21, 28 और 30 में मिले उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को इसी मसले पर पहले से लंबित याचिका के साथ सुनवाई के लिए संलग्न करने का भी आदेश दिया है, जिससे इस महत्वपूर्ण मामले पर जल्द ही एक स्पष्टता आने की उम्मीद है।