ढाका, बांग्लादेश: बांग्लादेश की राजनीति में इस समय बड़ा उथल-पुथल देखा जा रहा है। देश के कार्यवाहक सरकार प्रमुख और मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक विवादास्पद निर्णय ने न केवल राजनीतिक हलकों में, बल्कि आम नागरिकों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिवारों में भी भारी असंतोष पैदा कर दिया है। मंगलवार रात एक गुप्त तरीके से जारी अध्यादेश के माध्यम से, 1970 के ऐतिहासिक चुनावों में विजयी रहे 400 से अधिक नेताओं की “स्वतंत्रता सेनानी” के रूप में दी गई मान्यता को रद्द कर दिया गया।

बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान समेत कई बड़े नेताओं की मान्यता रद्द
इस सूची में जिन दिग्गजों के नाम शामिल हैं, वे बांग्लादेश के गठन और पाकिस्तान से मुक्ति संग्राम में केंद्रीय भूमिका निभा चुके हैं। इनमें शामिल हैं:
- बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान (बांग्लादेश के संस्थापक)
- सैयद नजरूल इस्लाम (कार्यवाहक राष्ट्रपति, निर्वासित सरकार)
- ताजुद्दीन अहमद (प्रथम प्रधानमंत्री)
- एम मंसूर अली (पूर्व प्रधानमंत्री)
- एएचएम कमरुज्जमां (पूर्व गृह मंत्री)
यह फैसला उस राष्ट्रीय स्वतंत्रता सेनानी परिषद अधिनियम 2022 के खिलाफ है, जिसमें इन्हें चार विशिष्ट श्रेणियों के तहत “वीर स्वतंत्रता सेनानी” की मान्यता दी गई थी। अब इन्हें केवल “मुक्ति संग्राम के सहयोगी” का दर्जा देकर, स्वतंत्रता सेनानी के रूप में मान्यता को हटा दिया गया है।
कैसे लिया गया यह फैसला?
यह आदेश राष्ट्रपति के निर्देश पर जारी किया गया। मंगलवार रात 11 बजे इसे राजपत्र में प्रकाशित कर दिया गया। अध्यादेश का प्रारूप मुक्ति संग्राम मामलों के सलाहकार फारुक-ए-आजम द्वारा तैयार किया गया था, जिस पर 10 मार्च से चर्चा चल रही थी। 21 मार्च को मीडिया में खबर आने के बाद इसे लेकर आलोचना शुरू हुई, लेकिन इसके बावजूद सरकार ने 15 मई को कानून मंत्रालय की समीक्षा के बाद इसे मंजूरी दे दी।
राजनीतिक विरोध और शेख हसीना की पार्टी पर सीधा हमला
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला शेख हसीना और उनकी पार्टी ‘अवामी लीग’ को कमजोर करने की रणनीति है। रद्द की गई मान्यताओं में से अधिकांश लोग या तो पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे हैं या उनसे जुड़े रहे हैं। इससे यह साफ संकेत मिल रहा है कि कार्यवाहक सरकार के निशाने पर शेख हसीना और उनके राजनीतिक विरासत से जुड़े नाम हैं।
देशभर में विरोध, इतिहास को फिर से लिखने की कोशिश?
इस अध्यादेश के खिलाफ मुक्ति संग्राम सेनानी संगठनों, विपक्षी दलों, इतिहासकारों और आम नागरिकों ने तीव्र विरोध जताया है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह बांग्लादेश के इतिहास के साथ छेड़छाड़ है। इस फैसले को न केवल राजनीतिक बल्कि ऐतिहासिक अन्याय के रूप में देखा जा रहा है।

सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा ट्रेंड कर रहा है। #SaveFreedomFighters #BangabandhuInsult जैसे हैशटैग्स के साथ लोगों ने यूनुस सरकार के इस कदम को लोकतंत्र और इतिहास के खिलाफ बताया है।
बैकग्राउंड: क्या है ‘जमुका’ और 1970 का महत्व?
राष्ट्रीय स्वतंत्रता सेनानी परिषद (जमुका) वह वैधानिक संस्था है जो बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में योगदान देने वालों को पहचान और मान्यता प्रदान करती है। 1970 के आम चुनाव बांग्लादेश की स्वतंत्रता की आधारशिला थे, जब अवामी लीग ने भारी बहुमत से जीत हासिल की थी, और पाकिस्तान की केंद्रीय सत्ता से बगावत की नींव रखी गई थी।