लॉस एंजेलिस, अमेरिका: संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को लॉस एंजेलिस में जारी अवैध अप्रवासी दंगों के बीच बड़ा कानूनी झटका लगा है। फेडरल कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए ट्रंप प्रशासन द्वारा की गई नेशनल गार्ड्स की तैनाती को असंवैधानिक करार देते हुए उस पर तत्काल रोक लगाने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि यह कार्यपालिका का अतिक्रमण है और राज्य की सहमति के बिना ऐसा कदम अवैध माना जाएगा।

क्या कहा कोर्ट ने?
फेडरल कोर्ट के आदेश के अनुसार,
“राज्य सरकार की सहमति के बिना लॉस एंजेलिस में नेशनल गार्ड्स की तैनाती वैध नहीं है। यह अमेरिका के संविधान के संघीय ढांचे का उल्लंघन है।”
इस मामले में कैलिफोर्निया के गवर्नर गेविन न्यूसम द्वारा दायर याचिका में अदालत से मांग की गई थी कि ट्रंप द्वारा 4000 गार्ड्स और 70 मरीन्स की तैनाती राज्य की स्वायत्तता के विरुद्ध है और इससे नागरिक स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
ट्रंप की रणनीति पर सवाल
पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप का दावा था कि लॉस एंजेलिस में फैल रही हिंसा और अव्यवस्था का कारण अवैध अप्रवासी गिरोह हैं। इसके समाधान हेतु उन्होंने संघीय स्तर पर नेशनल गार्ड्स और मरीन तैनात करने का आदेश दिया था।
हालांकि, इस कदम ने दंगों को और अधिक भड़का दिया और राज्य सरकार की अनुमति के बिना सैन्य हस्तक्षेप को लेकर सवाल खड़े हो गए।
संवैधानिक विमर्श: संघ बनाम राज्य
फैसले में कोर्ट ने साफ कहा कि जब तक संविधान के तहत राष्ट्रीय आपातकाल घोषित न किया जाए, राज्य की मर्जी के विरुद्ध सशस्त्र बलों की तैनाती नहीं की जा सकती। यह आदेश संघीय सरकार के लिए एक कड़ा संदेश है कि राज्य की संप्रभुता और संविधान की मर्यादा सर्वोपरि है।

गवर्नर न्यूसम की याचिका और बयान
गवर्नर न्यूसम ने कहा—
“यह फैसला हमारे संविधान की रक्षा करता है। संघीय सरकार चाहे कितनी भी ताकतवर हो, वह राज्य की सीमाओं और अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकती।”
उन्होंने ट्रंप प्रशासन की मंशा पर भी सवाल उठाए और आरोप लगाया कि यह राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन था, न कि कानून व्यवस्था बनाए रखने का प्रयास।
व्हाइट हाउस की चुप्पी
कोर्ट के फैसले के बाद अब तक व्हाइट हाउस या ट्रंप के प्रवक्ता की ओर से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला 2026 के राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप की संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है, खासकर उन राज्यों में जहां राज्याधिकार का मुद्दा संवेदनशील है।