नई दिल्ली: जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर तुर्की की इनोनू यूनिवर्सिटी के साथ हुए शैक्षणिक समझौते (एमओयू) को रद्द करने की घोषणा की है। विवि प्रशासन की ओर से साझा किए गए संदेश में बताया गया है कि यह निर्णय राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। यह एमओयू अब अगली सूचना तक प्रभावी नहीं रहेगा।

राष्ट्रीय हित सर्वोपरि, जेएनयू ने दिखाया संकल्प
जेएनयू प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि यह कदम पूरी तरह से देशहित को ध्यान में रखकर उठाया गया है। यूनिवर्सिटी के मुताबिक, वर्तमान समय में अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक करारों की समीक्षा के दौरान सुरक्षा संबंधी मुद्दों को प्राथमिकता दी जा रही है और इसी प्रक्रिया के तहत यह फैसला लिया गया है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने बयान में कहा कि जेएनयू देश के साथ खड़ा है।
Due to National Security considerations, the MoU between JNU and Inonu University, Türkiye stands suspended until further notice.
— Jawaharlal Nehru University (JNU) (@JNU_official_50) May 14, 2025
JNU stands with the Nation. #NationFirst @rashtrapatibhvn @VPIndia @narendramodi @PMOIndia @AmitShah @DrSJaishankar @MEAIndia @EduMinOfIndia
तीन माह पहले हुआ था शैक्षणिक करार
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी और तुर्की की इनोनू यूनिवर्सिटी के बीच 3 फरवरी 2025 को एकेडमिक कोलेबोरेशन के तहत आपसी समझौता हुआ था। इस करार के तहत दोनों संस्थानों के बीच रिसर्च, फैकल्टी और स्टूडेंट एक्सचेंज जैसे कार्यक्रम प्रस्तावित थे। लेकिन अब यह समझौता स्थगित कर दिया गया है।
तुर्की की भूमिका पर भारत में गुस्सा
भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया तनाव के दौरान तुर्की ने खुले तौर पर पाकिस्तान का पक्ष लिया, जिससे भारतीय जनमानस में गहरा असंतोष देखा गया है। तुर्की के इस रुख के खिलाफ भारत में विरोध तेज हो गया है। भारत और तुर्की के बीच जहां एक ओर अरबों रुपये का व्यापार होता है, वहीं सांस्कृतिक और शैक्षणिक संबंध भी लंबे समय से बने हुए हैं। मगर टर्की की पाकिस्तान समर्थक नीति ने भारत में व्यापारियों और संस्थानों को बायकॉट की ओर प्रेरित किया है।

व्यापारिक संगठनों के बाद अब शैक्षणिक संस्थान भी हुए सक्रिय
टर्की की गतिविधियों के विरोध में देश के व्यापारियों द्वारा उसके उत्पादों का बहिष्कार करने की घोषणा पहले ही की जा चुकी है। अब शैक्षणिक संस्थानों ने भी ऐसे कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। जेएनयू का यह निर्णय इसी श्रृंखला की एक कड़ी माना जा रहा है, जो यह दर्शाता है कि भारत के विभिन्न क्षेत्र तुर्की के प्रति बदलते रुख के प्रति एकजुट होकर प्रतिक्रिया दे रहे हैं।