नई दिल्ली: भारत सरकार ने शनिवार को सिंधु जल संधि को निलंबित करने का औपचारिक निर्णय लागू कर दिया है। गुरुवार को भारत ने एक औपचारिक अधिसूचना पाकिस्तान को सौंपते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि अब संधि के तहत भारत पर लागू दायित्वों को प्रभावी रूप से स्थगित कर दिया गया है। इसमें सिंधु आयुक्तों के बीच बैठकें, जल प्रवाह संबंधी डेटा साझा करना और नई परियोजनाओं की पूर्व सूचना देना शामिल था।
अब भारत बिना पाकिस्तान की अनुमति या परामर्श के पश्चिमी नदियों पर अपने बांधों व जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण कर सकेगा।
सीमा पार आतंकवाद को बताया संधि उल्लंघन का कारण
भारत की जल संसाधन सचिव देबाश्री मुखर्जी ने पाकिस्तान को भेजे पत्र में लिखा कि, “संधि को सद्भावना से निभाना दोनों पक्षों का दायित्व है। लेकिन पाकिस्तान लगातार भारतीय केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर को निशाना बनाते हुए सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देता रहा है, जिससे संधि के तहत भारत के अधिकारों में बाधा उत्पन्न होती है।”

पत्र में यह भी स्पष्ट किया गया कि इस तरह की गतिविधियाँ संधि की मूल भावना का गंभीर उल्लंघन हैं, जिसके कारण भारत ने इसे निलंबित करने का कदम उठाया है।
पाकिस्तान ने बताया युद्ध की कार्यवाही
पाकिस्तान ने भारत के इस फैसले को सख्त शब्दों में खारिज करते हुए कहा है कि सिंधु जल संधि को निलंबित करना या पाकिस्तान के हिस्से के जल प्रवाह को रोकने का कोई भी प्रयास ‘युद्ध की कार्यवाही’ माना जाएगा। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को एक बयान में कहा कि भारत का यह कदम अंतरराष्ट्रीय कानूनों और समझौतों का उल्लंघन है।
सिंधु जल संधि: एक ऐतिहासिक समझौता
सिंधु जल संधि पर भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 को विश्व बैंक की मध्यस्थता में हस्ताक्षर किए गए थे। इस संधि के तहत:
- भारत को सतलुज, ब्यास और रावी नदियों पर पूर्ण नियंत्रण दिया गया।
- पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों के जल उपयोग का अधिकार दिया गया, जो जम्मू-कश्मीर से होकर बहती हैं।
- जल प्रवाह से जुड़ी सूचनाओं का नियमित आदान-प्रदान और आपसी विवादों का शांतिपूर्ण समाधान सुनिश्चित किया गया था।

निलंबन के प्रभाव
1. स्थायी सिंधु आयोग की गतिविधियां बंद
अब दोनों देशों के स्थायी सिंधु आयुक्तों की वार्षिक बैठकें नहीं होंगी। नदियों पर सहयोग और संवाद के सभी माध्यम ठप हो जाएंगे।
2. जल प्रवाह व आपदा चेतावनी का डेटा साझा नहीं होगा
भारत अब पाकिस्तान को नदियों के प्रवाह, बाढ़ की चेतावनी या ग्लेशियरों के पिघलने जैसी महत्वपूर्ण जानकारियां नहीं देगा। इससे पाकिस्तान को सूखा या बाढ़ जैसी आपदाओं का पूर्वानुमान लगाने में कठिनाई होगी।
3. परियोजनाओं की पूर्व सूचना देना बंद
भारत अब पश्चिमी नदियों पर जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण बिना पाकिस्तान को सूचना दिए कर सकेगा। इससे पाकिस्तान परियोजनाओं की डिजाइनों पर आपत्ति नहीं कर पाएगा।
4. पाकिस्तानी निरीक्षण दलों पर रोक
अब पाकिस्तान के सिंधु जल आयुक्त भारतीय क्षेत्रों, विशेषकर जम्मू-कश्मीर में जाकर निरीक्षण नहीं कर सकेंगे। पहले वे भारतीय परियोजनाओं का भौतिक निरीक्षण करते थे।
5. वार्षिक रिपोर्ट का प्रकाशन बंद
स्थायी सिंधु आयोग अब वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित नहीं करेगा, जिससे पाकिस्तान को जल उपयोग और प्रवाह के आंकड़े नहीं मिल पाएंगे।
पाकिस्तान पर संभावित प्रभाव
विशेषज्ञों के अनुसार, सिंधु जल संधि के निलंबन से पाकिस्तान की कृषि अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। पाकिस्तान की लगभग 90% सिंचाई प्रणाली सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों पर निर्भर है। संभावित प्रभाव इस प्रकार होंगे:
- जल संकट: पश्चिमी नदियों से जल आपूर्ति में रुकावट से सिंध, पंजाब और बलूचिस्तान जैसे प्रांतों में जल संकट गहरा सकता है।
- कृषि उत्पादन में गिरावट: प्रमुख फसलें जैसे गेहूं, चावल और गन्ना बुरी तरह प्रभावित हो सकती हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा संकट उत्पन्न होगा।
- आर्थिक अस्थिरता: कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर असर पड़ने से पाकिस्तान की पहले से कमजोर होती जीडीपी और बढ़ते कर्ज पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा।
- ऊर्जा संकट: सिंधु बेसिन पर आधारित जलविद्युत संयंत्रों की उत्पादन क्षमता घटने से पाकिस्तान को अधिक कोयला या अन्य ऊर्जा स्रोतों का आयात करना पड़ेगा, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार पर बोझ बढ़ेगा।
- घरेलू अस्थिरता: जल संकट और कृषि उत्पादन में कमी से आंतरिक असंतोष और राजनीतिक अस्थिरता बढ़ने की आशंका है।