Saturday, April 19, 2025
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वक्फ संशोधन कानून सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर, केंद्र से मांगा जवाब; सांसद निशिकांत दुबे बोले- संसद भवन बंद कर देना चाहिए

नई दिल्ली: विवादित वक्फ संशोधन कानून अब सर्वोच्च न्यायालय की समीक्षा के घेरे में आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह सात दिनों के भीतर इस मामले में अपना जवाब दाखिल करे। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कानून के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताई है और अगली सुनवाई 5 मई को निर्धारित की है।

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संसद बनाम न्यायपालिका की बहस तेज

इस संवेदनशील मामले पर राजनीतिक और संवैधानिक विमर्श भी तेज हो गया है। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने शुक्रवार को इंटरनेट मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर एक तीखी टिप्पणी करते हुए लिखा –

“अगर कानून सुप्रीम कोर्ट ही बनाएगा तो संसद भवन को बंद कर देना चाहिए।”

उनके इस बयान से विधायिका और न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र को लेकर बहस और गहराती दिख रही है।

रिजिजू और उपराष्ट्रपति की भी तीखी प्रतिक्रिया

इससे पूर्व संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने भी न्यायपालिका को लेकर अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा था –

“विधायिका और न्यायपालिका को एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए। अगर कल को सरकार न्यायपालिका में हस्तक्षेप करने लगे तो स्थिति उचित नहीं होगी। संविधान में शक्तियों का स्पष्ट बंटवारा है।”

वहीं, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को अनुच्छेद 142 का उल्लेख करते हुए कहा कि –

“यह अनुच्छेद न्यायपालिका के लिए लोकतंत्र की अन्य शक्तियों के खिलाफ परमाणु मिसाइल बन गया है।”

धनखड़ ने सवाल उठाया कि –

“क्या भारत में ऐसी स्थिति बन सकती है जहां न्यायपालिका राष्ट्रपति को निर्देश दे? संविधान के तहत सुप्रीम कोर्ट के पास केवल अनुच्छेद 145(3) के अंतर्गत संविधान की व्याख्या करने का अधिकार है।”

वक्फ संशोधन कानून: कोर्ट की आपत्ति और अंतरिम आदेश

गुरुवार को हुई एक घंटे लंबी सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन कानून के गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में शामिल करने और वक्फ बाय यूजर संपत्तियों में संभावित बदलाव पर चिंता जताई। कोर्ट ने आदेश दिया कि अगली सुनवाई तक इन बिंदुओं पर रोक लगाई जाती है

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  • केंद्र सरकार को 7 दिन में जवाब दाखिल करना होगा
  • याचिकाकर्ताओं को 5 दिन में प्रत्युत्तर देना होगा
  • अगली सुनवाई 5 मई 2025 को होगी

पृष्ठभूमि: तमिलनाडु विवाद का प्रभाव

उपराष्ट्रपति धनखड़ की यह टिप्पणी तमिलनाडु राज्यपाल बनाम राज्य सरकार मामले के बाद आई है। इस मामले में राज्य सरकार ने आरोप लगाया था कि राज्यपाल ने 10 विधेयकों की मंजूरी जानबूझकर रोकी है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया था।

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