नई दिल्ली: भारत में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक बदलाव की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट ने ‘एक देश, एक चुनाव’ (One Nation One Election) के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इस निर्णय के बाद अब विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ कराए जाने की संभावनाएं और प्रबल हो गई हैं। इस प्रस्ताव को मंजूरी पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी समिति की रिपोर्ट के बाद दी गई है। समिति की रिपोर्ट का आधार तैयार होने के बाद, यह विधेयक आगामी शीतकालीन सत्र में संसद के समक्ष रखा जाएगा।
शीतकालीन सत्र में एनडीए सरकार लेकर आएगी विधेयक
मोदी सरकार पिछले कार्यकाल से ही ‘एक देश, एक चुनाव’ के विचार को गंभीरता से ले रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने कई मंचों पर और चुनावी रैलियों में इस मुद्दे को उठाया था। हाल ही में एनडीए सरकार के 100 दिन पूरे होने पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इस योजना के प्रति एनडीए सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराया था। अमित शाह ने संकेत दिया था कि सरकार इस प्रस्ताव पर तेजी से काम कर रही है और अब इस पर विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा।
15 अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी ने दिए थे संकेत
15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘एक देश, एक चुनाव’ का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि बार-बार चुनाव कराने से न केवल देश की प्रगति में बाधा आती है, बल्कि आर्थिक और प्रशासनिक रूप से भी यह एक चुनौती है। प्रधानमंत्री ने इसे समय की मांग बताते हुए कहा था कि देश को बार-बार चुनाव की प्रक्रिया से मुक्त करना आवश्यक है, ताकि संसाधनों का सही उपयोग हो सके और विकास की गति को बढ़ावा मिल सके।
18 हजार 626 पन्नों की कोविंद कमेटी की रिपोर्ट
इस प्रस्ताव को आधार देने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था, जिसने इस साल 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। यह रिपोर्ट 18 हजार 626 पन्नों की है, जिसमें विभिन्न पहलुओं का विस्तृत अध्ययन और सुझाव शामिल हैं। रिपोर्ट में न केवल चुनावी प्रक्रिया में सुधारों की आवश्यकता बताई गई है, बल्कि इससे जुड़े संवैधानिक, कानूनी, प्रशासनिक और वित्तीय पहलुओं पर भी विस्तार से चर्चा की गई है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में ‘एक देश, एक चुनाव’ के प्रस्ताव को व्यवहारिक और आवश्यक बताया है, जिससे देश की राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था को एक नई दिशा मिल सके।