Friday, November 22, 2024
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उत्तर कोरिया में तानाशाही का कहर: बाढ़ देख भड़का किम का गुस्सा, तबाही रोकने में नाकामी पर 30 अफसरों को दी गई मौत की सजा

उत्तर कोरिया में तानाशाही का कहर: उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन के शासन में गलती की कोई गुंजाइश नहीं होती। अधिकारियों से लेकर आम नागरिकों तक, किसी भी प्रकार की लापरवाही का परिणाम मौत हो सकता है। हाल ही में इसका क्रूरतम उदाहरण देखने को मिला, जब बाढ़ की तबाही रोक पाने में विफल रहने पर 30 अधिकारियों को सामूहिक रूप से फांसी दे दी गई।

बाढ़ की तबाही से भड़के किम जोंग उन

दक्षिण कोरियाई मीडिया और न्यूयॉर्क पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर कोरिया के किम जोंग उन ने बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा किया, जहां हाल ही में विनाशकारी बाढ़ के कारण 4,000 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और 15,000 से अधिक लोग बेघर हो गए थे। बाढ़ की विभीषिका देखकर तानाशाह इस कदर क्रोधित हो गए कि उन्होंने बाढ़ के दौरान लापरवाही बरतने वाले 30 अधिकारियों को फांसी की सजा दे दी। इन अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए गए थे।

फांसी की सजा की पुष्टि नहीं

हालांकि, उत्तर कोरिया की ओर से अब तक इस सामूहिक फांसी की सजा की पुष्टि नहीं की गई है, लेकिन दक्षिण कोरियाई टीवी चोसुन की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि पिछले महीने के अंत में 20 से 30 अधिकारियों को एक साथ एक ही स्थान पर मौत के घाट उतार दिया गया था। इन अधिकारियों में 2019 से चागांग प्रांत की प्रांतीय पार्टी समिति के सचिव कांग बोंग-हून भी शामिल थे, जिन्हें बाढ़ आपदा के दौरान एक आपात बैठक में किम जोंग उन ने बर्खास्त कर दिया था।

जुलाई में मिला था सजा का आदेश

रिपोर्ट्स के अनुसार, नॉर्थ कोरिया की सेंट्रल न्यूज एजेंसी ने जुलाई में चागांग प्रांत में आई विनाशकारी बाढ़ के बाद अधिकारियों को सख्त सजा देने का आदेश दिया था। यह बाढ़ इतनी भीषण थी कि इसमें हजारों लोगों की जान चली गई और हजारों लोग बेघर हो गए। इसके बाद किम जोंग उन ने बाढ़ की तबाही रोकने में असफल रहने वाले अधिकारियों के लिए कड़ी सजा की घोषणा की थी।

उत्तर कोरिया में फांसी आम बात

उत्तर कोरिया में फांसी की सजा देना आम बात है। कोरोना महामारी से पहले हर साल औसतन 10 लोगों को सार्वजनिक रूप से फांसी दी जाती थी। लेकिन, कोरोना महामारी के बाद यह दर और भी बढ़ गई है। रिपोर्ट्स के अनुसार, पिछले साल कम से कम 100 लोगों को सार्वजनिक रूप से फांसी दी गई थी। उत्तर कोरिया के इस क्रूर रवैये की आलोचना अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हो रही है, लेकिन वहां के नागरिकों और अधिकारियों के लिए यह जीवन का एक कड़वा सच बन चुका है।

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