Thursday, December 11, 2025
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हिमंत बिस्वा सरमा ने इस्लामोफोबिया के आरोपों पर दिया जवाब, कहा- “काशी और मथुरा पर दावा छोड़ें मुसलमान”

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के फायरब्रांड नेता और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पर अक्सर इस्लामोफोबिया का सहारा लेने का आरोप लगाया जाता है। एक हालिया इंटरव्यू में उन्होंने इन आरोपों का जवाब देते हुए कुछ विचार प्रस्तुत किए जो देश भर में चर्चा का विषय बने हुए हैं।

इस्लामोफोबिया के आरोप और जवाब

हिमंत बिस्वा सरमा ने अपने इंटरव्यू में स्पष्ट रूप से कहा कि भारत के मुसलमानों को वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह पर दावा छोड़ देना चाहिए। उनके अनुसार, इन स्थानों को हिंदुओं के लिए छोड़ देने से इस्लामोफोबिया की समस्या काफी हद तक खत्म हो सकती है। उन्होंने कहा, “भारत में इस्लामोफोबिया की जड़ें गहरी हैं क्योंकि हमारे देश में मुसलमानों का एक वर्ग बहुसंख्यक समुदाय से नफरत करता है।”

असम का उदाहरण

असम के मुख्यमंत्री ने अपने राज्य का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने चुनावी भाषणों में कभी मुस्लिम शब्द का उल्लेख नहीं किया, बावजूद इसके कि उन्होंने मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में खूब प्रचार किया। उन्होंने बताया कि उनकी सरकार ने मुस्लिम समुदाय के एक बड़े हिस्से को हिंदू विरोधी से बदलकर हिंदुओं के साथ सह-अस्तित्व में रहने वाले लोगों में बदल दिया है। उन्होंने कहा, “असम में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सद्भाव अब तक के उच्चतम स्तर पर है।”

इस्लामोफोबिया कम करने के उपाय

सीएम हिमंत ने इस्लामोफोबिया को कम करने के उपायों पर भी अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता को स्वीकार करने से और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि और काशी में ज्ञानवापी मस्जिद हिंदुओं को दे देने से स्थिति बदल जाएगी। उन्होंने कहा, “इससे हिंदुओं के बीच इस्लामोफोबिया कम होगा।”

भविष्य के दृष्टिकोण

उन्होंने दावा किया कि आने वाले पांच सालों में मोदी सरकार के तहत सभी मुद्दे सुलझ जाएंगे और देश विकास की राजनीति की ओर अग्रसर होगा। उन्होंने कहा, “इस्लामोफोबिया को तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगों द्वारा कम नहीं किया जा सकता है। इसे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच संवाद से कम किया जाना चाहिए।”

पूर्वोत्तर में भाजपा की संभावनाएं

असम के मुख्यमंत्री ने भाजपा गठबंधन की पूर्वोत्तर में 25 में से 21-22 सीटें जीतने की संभावना जताई। उन्होंने कहा कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के पारित होने के बाद असम में किसी प्रकार के विरोध प्रदर्शन नहीं हुए, जो दर्शाता है कि पहले बहुत सारी गलतफहमियां थीं।

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