Friday, August 8, 2025
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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: नागरिकता अधिनियम की धारा 6A की वैधता बरकरार

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए नागरिकता अधिनियम की धारा 6A की वैधता को बरकरार रखा है। यह धारा 1985 में असम समझौते के बाद पेश की गई थी, जिसका उद्देश्य उन बांग्लादेशी प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने से रोकना है जो मार्च 1971 से पहले भारत में प्रवेश कर चुके हैं।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और असहमति

सुप्रीम कोर्ट ने 4-1 के बहुमत से धारा 6A को वैध करार दिया। इस फैसले में सिर्फ जस्टिस जेबी पारदीवाला ने असहमति जताई। पिछले साल 12 दिसंबर को इस मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय सुरक्षित रखा था। मुख्य न्यायाधीश ने बताया कि असम समझौता बढ़ते प्रवास के मुद्दे का राजनीतिक समाधान था, जबकि धारा 6A एक विधायी समाधान के रूप में कार्य करती है।

धारा 6A का विवरण

धारा 6 के अनुसार, बांग्लादेशी अप्रवासी जो 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच असम आए हैं, वे भारतीय नागरिक के रूप में रजिस्टर कर सकते हैं। इसके विपरीत, 25 मार्च 1971 के बाद असम आने वाले विदेशी नागरिक भारतीय नागरिकता के लिए पात्र नहीं हैं।

याचिकाओं का मुख्य मुद्दा

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में आरोप लगाया गया था कि 1966 के बाद पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से अवैध शरणार्थियों के आने से राज्य का जनसांख्यिकी संतुलन बिगड़ रहा है। इसके चलते राज्य के मूल निवासियों के राजनीतिक और सांस्कृतिक अधिकारों का हनन हो रहा है। याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि सरकार ने नागरिकता कानून में धारा 6A जोड़कर अवैध घुसपैठ को कानूनी मंजूरी दी है।

असम समझौता और धारा 6A की पृष्ठभूमि

वास्तव में, असम समझौते के तहत भारत में आने वाले लोगों की नागरिकता से संबंधित मामलों को निपटने के लिए नागरिकता अधिनियम में धारा 6A को जोड़ा गया था। इसके अनुसार, जो लोग 1985 में बांग्लादेश समेत अन्य क्षेत्रों से 1 जनवरी 1966 या उसके बाद लेकिन 25 मार्च 1971 से पहले असम आए हैं और तब से वहां निवास कर रहे हैं, उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए धारा 18 के तहत रजिस्ट्रेशन कराना होगा।

कोर्ट की सुनवाई का क्रम

2014 में, इस मामले को सुप्रीम कोर्ट की कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच के पास भेजा गया था। 5 दिसंबर 2023 को असम में नागरिकता अधिनियम की धारा 6A से संबंधित 17 याचिकाओं पर पांच जजों की बेंच ने सुनवाई शुरू की। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि 1966 से 1971 के बीच बांग्लादेशी प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का असम की जनसंख्या और सांस्कृतिक पहचान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।

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