नागपुर, महाराष्ट्र: विजयदशमी के पावन अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर के रेशम बाग मैदान में ‘शस्त्र पूजन’ किया। यह कार्यक्रम संघ के लिए एक परंपरा है, जो दशहरे के दिन आयोजित किया जाता है। इस बार के समारोह में ISRO के पूर्व प्रमुख के राधाकृष्णन मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। मोहन भागवत ने इस अवसर पर अपने संबोधन में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार व्यक्त किए, जिनमें बांग्लादेश, पाकिस्तान और जम्मू-कश्मीर की स्थिति शामिल थी।
भारत के खिलाफ पाकिस्तान का साथ लेने की चर्चा: मोहन भागवत
अपने भाषण में मोहन भागवत ने कहा कि बांग्लादेश में कुछ लोगों के बीच ऐसी चर्चा चल रही है कि भारत के खिलाफ पाकिस्तान का साथ लेना चाहिए, क्योंकि पाकिस्तान के पास न्यूक्लियर वेपन हैं। भागवत ने इसे गंभीरता से लेते हुए कहा कि बांग्लादेश और पाकिस्तान में हिंदुओं को संगठित होना चाहिए ताकि वे अपने अस्तित्व की रक्षा कर सकें। उन्होंने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों की ओर ध्यान आकर्षित किया और वहां के हिंदू समाज से अपने बचाव के लिए संगठित होकर आगे आने का आह्वान किया।
बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार: संगठित होने का आह्वान
बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ हो रहे अत्याचारों पर चिंता जताते हुए मोहन भागवत ने कहा, “वहां के स्थानीय कारणों की वजह से कई बार हिंसक तख्तापलट हुए, और हर बार हिंदू समाज को निशाना बनाया गया। लेकिन इस बार हिंदू समाज ने संगठित होकर प्रतिरोध किया, जिससे कुछ हद तक बचाव हो सका। हालांकि, जब तक वहां के कट्टरपंथी ताकतें सक्रिय हैं, तब तक हिंदुओं सहित सभी अल्पसंख्यक समुदायों को खतरा बना रहेगा।”
भागवत के इस बयान से साफ है कि संघ प्रमुख का ध्यान सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि वह पड़ोसी देशों में हिंदुओं की स्थिति पर भी गंभीरता से नजर बनाए हुए हैं। उन्होंने बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू समुदायों को संगठित होकर अपने अधिकारों की रक्षा करने की सलाह दी।
जम्मू-कश्मीर चुनाव और भारत की बढ़ती साख
मोहन भागवत ने जम्मू-कश्मीर के हालिया चुनावों पर भी अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि वहां के चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए हैं, जिससे भारत की अंतरराष्ट्रीय साख में बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने कहा, “जम्मू-कश्मीर के चुनावों के सफल आयोजन ने दुनिया में भारत की छवि को और मजबूत किया है। भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया और शांति को दुनिया ने सराहा है।”