महाराष्ट्र, मुंबई: महाराष्ट्र सरकार ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत पहली कक्षा से ऊपर के छात्रों के लिए हिंदी भाषा को अनिवार्य करने का निर्णय लिया है। यह आदेश विशेष रूप से मराठी माध्यम के स्कूलों में लागू किया जा रहा है, जिससे राज्य की सियासत में भूचाल आ गया है। इस फैसले को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने तीव्र विरोध दर्ज कराया है।
आदित्य ठाकरे का तीखा विरोध: “तीन भाषाओं का बोझ उचित नहीं”
शिवसेना (UBT) के वरिष्ठ नेता आदित्य ठाकरे ने इस फैसले को अव्यवहारिक बताते हुए इसकी कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा:
“बच्चों पर एक साथ मराठी, अंग्रेज़ी और अब हिंदी लाद देना गलत है। पहली कक्षा के बच्चों पर तीन भाषाओं का बोझ डाला जा रहा है, जो उनकी मानसिक और बौद्धिक विकास यात्रा को बाधित कर सकता है।”

ठाकरे ने सुझाव दिया कि नई भाषा को क्रमिक रूप से, धीरे-धीरे सिखाया जाना चाहिए, ताकि छात्रों पर अतिरिक्त मानसिक दबाव न पड़े।
राजनीतिक निहितार्थों की ओर इशारा: बिहार चुनाव का जिक्र
आदित्य ठाकरे ने इस निर्णय को केवल शैक्षणिक न मानते हुए, इसे एक राजनीतिक कदम बताया। उन्होंने कहा:
“मैं इसे दो स्तरों पर देखता हूं – पहले, दो ऐसे नेताओं की बैठक हुई जिन्हें मराठी और हिंदी दोनों की ज़रूरत है। कोई BMC में मराठी का मुद्दा चलाता है तो कोई बिहार चुनावों में हिंदी का। जनता को बांटो और राजनीति चमकाओ – यही रणनीति है।”
शिक्षकों और शिक्षा व्यवस्था पर बढ़ता बोझ
ठाकरे ने शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा:
“पहले से ही शिक्षक प्रशासनिक कार्य और पढ़ाई के दबाव में हैं, अब एक नई भाषा की ज़िम्मेदारी और डाल दी गई है। जब सरकार समय पर यूनिफॉर्म तक नहीं दे पा रही, तब तीसरी भाषा अनिवार्य करने की क्या जल्दी?”
उन्होंने राज्य के शिक्षा मंत्री दादा भुसे पर तंज कसते हुए कहा:
“क्या वो खुद एक भाषा अच्छे से जानते हैं?“
राज ठाकरे की कड़ी प्रतिक्रिया: “हम हिंदू हैं, हिंदी नहीं”
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे ने भी सरकार के इस फैसले पर तीखा हमला बोला। उन्होंने स्पष्ट कहा:
“हम हिंदू हैं, हिंदी नहीं।“
उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे को लेकर मुंबई के घाटकोपर क्षेत्र में हिंदी की पाठ्यपुस्तकों को जलाकर विरोध प्रदर्शन भी किया। यह दृश्य सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से साझा किया गया और बहस का विषय बन गया।

महाराष्ट्र में भाषाई असंतुलन की नई बहस
हिंदी को अनिवार्य करने के निर्णय से महाराष्ट्र में भाषा के अधिकार और सांस्कृतिक पहचान पर नई बहस छिड़ गई है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बन सकता है।