मणिपुर हिंसा ताज़ा खबर: मणिपुर में करीब 9 महीने से जारी हिंसा की वजह से लगातार आलोचनाओं का सामना कर रहे राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने बड़ी घोषणा की है. उन्होंने सोमवार को कहा कि, 1961 के बाद राज्य में आने और बसने वाले लोगों की पहचान की जाएगी और उन्हें यहां से डिपोर्ट यानी निर्वासित किया जाएगा, चाहे वे किसी भी जाति या समुदाय के हों. सीएम के इस फैसले को मणिपुर के जातीय समुदायों की रक्षा के कदम के रूप में देखा जा रहा है.
एन. बीरेन सिंह ने राज्य में महीनों तक चली हिंसा के लिए ड्रग माफिया और अवैध प्रवासियों, विशेष रूप से म्यांमार के शरणार्थियों को जिम्मेदार ठहराया था. सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि 1961 मणिपुर में इनर लाइन परमिट प्रणाली के लिए बेस ईयर के रूप में काम करता है. बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन 1873 के तहत ब्रिटिश शासन के दौरान लागू आईएलपी मणिपुर में बिना मंजूरी के गैर-मूल निवासियों के प्रवेश को प्रतिबंधित करता है. हालांकि इसे 1950 में मणिपुर से वापस ले लिया गया था. व्यापक विरोध के बाद केंद्र ने इसे दिसंबर 2019 में फिर से लागू कर दिया था.
यह अस्तित्व की लड़ाई है: बीरेन
सीएम बीरेन सिंह ने कहा, “हर कोई जानता है कि हम कठिन समय से गुजर रहे हैं, फिर भी हमें जिंदा रहना है, हमें जीना है. आज जो हो रहा है वह अस्तित्व और पहचान की लड़ाई है.” उन्होंने कहा, सदियों से विरासत में मिली संपत्तियां और पहचान अब कुछ राजनेताओं की दूरदर्शिता की कमी के कारण असुरक्षित हो गई हैं. हमारी आज की पीढ़ी असुरक्षित है, इसलिए सरकार आपके भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए काम कर रही है.’’
कहा- सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करना हमारा मकसद
सिंह ने भारत-म्यांमार मुक्त आवागमन व्यवस्था (एफएमआर) को रद्द करने के संबंध में सोशल मीडिया पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की पोस्ट पर भी प्रकाश डाला, जिसमें आंतरिक सुरक्षा और जनसांख्यिकीय चुनौतियों से निपटने में इसके महत्व को बताया गया है. मुख्यमंत्री ने जोर देकर कहा कि सीमा पर बाड़ लगाने और एफएमआर को रद्द करने सहित सरकार के उठाए गए कदमों का उद्देश्य एक सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करना है, जिससे व्यापक अवैध अप्रवासन और मादक पदार्थों व हथियारों की तस्करी जैसी गतिविधियों को खत्म किया जा सके.
क्या है इनर लाइन परमिट?
केंद्र सरकार ने मणिपुर में 2019 में इनर लाइन परमिट (ILP) सिस्टम लागू करने की घोषणा की थी. जिस राज्य में ILP लागू होता है, वहां बिना परमिशन के गैर-मूल निवासियों की एंट्री पर रोक होती है. ब्रिटिश शासन के दौरान बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन 1873 के तहत इसे लागू किया गया था. हालांकि, 1950 में मणिपुर से ILP हटा लिया गया था. इसे फिर से लागू करने की मांग लंबे समय से चल रही थी. केंद्र के फैसले के बाद 1 जनवरी 2020 से ILP मणिपुर में फिर से लागू हुआ. राज्य सरकार ने 2022 में ILP के तहत प्रवासियों के लिए 1961 को बेस ईयर माना. राज्य में 1961 से पहले बाहर से आए लोगों मूल निवासी नहीं मानने का प्रावधान किया गया. मणिपुर के अलावा पूर्वोत्तर के मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड में भी यह सिस्टम लागू है.