भारत के साथ व्यापार घाटा 99.2 अरब डॉलर, संबंधों में सुधार के संकेत भी दिए
बीजिंग, चीन: भारत-चीन संबंधों में तमाम भौगोलिक और राजनीतिक चुनौतियों के बावजूद व्यापारिक समीकरणों की बात करें तो चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा चिंताजनक रूप से लगातार बढ़ रहा है। हाल ही में सामने आए आंकड़ों के अनुसार यह घाटा बढ़कर 99.2 अरब डॉलर के ऐतिहासिक स्तर तक पहुंच गया है। हालांकि इसी बीच चीन की ओर से व्यापार संतुलन के प्रयास के संकेत मिले हैं।

चीन ने जताई भारतीय प्रीमियम उत्पादों में रुचि
बीजिंग में भारत के राजदूत शू फेहोंग ने एक साक्षात्कार में बताया कि चीन भारतीय प्रीमियम उत्पादों के आयात के लिए तैयार है ताकि दोनों देशों के बीच व्यापार संतुलन को सुधारा जा सके। टाइम्स ऑफ इंडिया से विशेष बातचीत में शू ने कहा कि भारत की कंपनियों को चीनी बाजार में बेहतर अवसर देने को लेकर चीन गंभीर है।
“निष्पक्ष और भेदभाव रहित माहौल अपेक्षित”
हालांकि शू ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत की ओर से चीनी कंपनियों को निष्पक्ष, पारदर्शी और भेदभाव रहित कारोबारी माहौल उपलब्ध कराना भी उतना ही जरूरी है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान का समर्थन किया जिसमें कहा गया था कि “प्रतिस्पर्धा को टकराव में नहीं बदलना चाहिए।”
व्यापार असंतुलन पर चीन की सफाई
व्यापार घाटे को लेकर चीन की ओर से सफाई दी गई है कि वह जानबूझकर व्यापार अधिशेष नहीं चाहता। राजदूत शू ने भारतीय कंपनियों को चीन की विशाल उपभोक्ता ताकत का लाभ उठाने की सलाह दी। उन्होंने उदाहरण स्वरूप मिर्च, लौह अयस्क और सूती धागे जैसे उत्पादों का उल्लेख किया जिनके निर्यात में हाल ही में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। उन्होंने भारतीय कंपनियों को चीन में आयोजित अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेलों में भाग लेने का आमंत्रण भी दिया।
संबंधों में सुधार के संकेत
राजदूत शू ने यह भी बताया कि भारत-चीन सीमा तनाव को कम करने के लिए लगातार संवाद हो रहे हैं और अब रिश्तों में सुधार के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं। उन्होंने दोनों देशों से अपेक्षा जताई कि वे सीमित विवादों को व्यापक संबंधों पर हावी न होने दें, ताकि एशिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं मिलकर प्रगति की दिशा में आगे बढ़ सकें।

मशीनरी और मानव संसाधन पर स्थिति स्पष्ट
भारत की उस चिंता पर भी चीन की ओर से प्रतिक्रिया आई जिसमें तकनीकी उपकरणों और मानव संसाधन की आपूर्ति पर अवरोध का जिक्र किया गया था। शू ने कहा कि चीन ने कभी भी तकनीकी विशेषज्ञों या मशीनरी के भारत आगमन पर पाबंदी नहीं लगाई, बल्कि चीन के नागरिकों को भारतीय वीजा मिलने में कठिनाइयों और मीडिया में चीन के प्रति नकारात्मक छवि को लेकर असंतोष जताया।