पिलानी: एक तरफ सरकार राजकीय विद्यालयों में नामांकन बढ़ाने पर जोर दे रही है, वहीं दूसरी तरफ जिले में ऐसे भी राजकीय विद्यालय हैं जिनमें बेसिक सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं है।
एसा ही एक राजकीय विद्यालय है पिलानी ब्लॉक के गांव बदनगढ़ में। गांव के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में कुल 128 बच्चे हैं।
कक्षा एक से बारहवीं तक के इस विद्यालय में विद्यार्थियों के बैठने के लिए सिर्फ 6 क्लास रूम उपलब्ध हैं। बारिश के सीजन में इन 6 क्लास रूम में से तीन रूम के हालात बद से बद्तर हो जाते हैं। इन तीन कमरों की छतों से इस कदर पानी टपकता है के मानो किसी ने पानी का नल खुला छोड़ दिया हो।
मजबूरन बच्चे एक तरफ दुबक कर अपनी शिक्षा ग्रहण करते हैं। टपकती छतों से गिरते पानी के बीच पढ़ाई करते बच्चों के चहरे पर एक अनजान डर साफ दिखाई देता है।
विद्यालय स्टाफ मजबूरन एक कमरे में दो क्लास के विद्यार्थियों को बैठा कर पढ़ाते हैं। जब एक कक्षा का पीरियड आता है तो दूसरी कक्षा के बच्चे खाली बैठे रहते हैं। एसे में उन बच्चों की पढ़ाई में भी व्यवधान उत्पन्न होता है। कुछ क्लासेज बाहर बने टीन शैड में संचालित होती है, जिससे बारिश की फुहारों से बच्चे व उनकी किताबें भीग जाती हैं।
चार साल पहले विधायक कोटे से स्कूल में एक कमरे का निर्माण करवाया गया था। इस एक मात्र कमरे में प्रधानाचार्य का कार्यालय, उप प्रधानाचार्य का कार्यालय, स्टाफ रूम, लाइब्रेरी, कम्प्यूटर रूम, परिक्षा हॉल एक साथ संचालित करने पड़ रहे हैं। इस कमरे में भी बारिश के समय छत टपकती है। विद्यालय स्टाफ को इन्वेटर, बैटरी व कम्प्यूटर आदी सामान को पोलीथीन से ढक कर पानी से बचाना पड़ता है।
साल भर पहले शिक्षा विभाग द्वारा विभागीय इंजिनियर से इस स्कूल के भवन का निरिक्षण करवाया गया था। उस वक्त स्कूल में कुल दस कमरे हुआ करते थे। विभागीय इंजीनियर ने दस में से चार कमरों को खतरनाक माना था, इन कमरों में पढ़ाना जानलेवा हद तक गंभीर मामला था। इंजिनियर द्वारा इन चारों कमरों को गिरा देने व तीन कमरों की मरम्मत किए जाने की सिफारिश का लेटर जारी किया गया था। विभागीय आदेश से जीर्ण-शीर्ण चार कमरों को तो गिरवा दिया गया, लेकिन मरम्मत योग्य तीन कमरों की सुध आज तलक नहीं ली गई।
समसा के तहत इस विद्यालय के लिए गांव के बाहर दो कमरों का भी निर्माण कुछ वर्ष पूर्व करवाया गया था। एक कमरे का निर्माण भामाशाहों द्वारा करवाया जाना था जो अभी अधूरा पड़ा है। समसा के तहत बनें ये दो कमरे भी रख रखाव के अभाव के कारण जल्द ही खंडहर में बदल जायेंगे।
शिक्षा विभाग के इस ढुलमुल रवैए से स्कूल में सहयोग करने वाले भामाशाह, अभिभावक व ग्रामीण खासे नाराज हैं।
भामाशाहों का कहना है कि सरकार को विद्यालय की सुध लेनी चाहिए। सिर्फ भामाशाहों के योगदान से राजकीय विद्यालय नहीं चला करतें। अभिभावक भी अपने कलेजे के टुकड़ों को ऐसे जीर्ण-शीर्ण विद्यालय में भेजने से डरते हैं।
शिक्षा विभाग द्वारा राजकीय विद्यालयों के लिए बारिश के मौसम में एक मैसेज जारी किया जाता है “अगर विद्यालय भवन की स्थिति ठीक नहीं है तो किसी प्रकार का कोई रिस्क ना लिया जाए तथा बच्चों की छुट्टी कर दी जाए।” इस एक मैसेज के जरिए विभाग अपना पल्ला झाड़ लेता है।
शिक्षा विभाग फिलहाल शायद गहरी नींद में है और किसी अनहोनी के होने का इंतजार कर रहा है।