Thursday, November 21, 2024
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निर्मला सीतारमण और अन्य के खिलाफ चुनावी बॉन्ड के जरिए कथित जबरन वसूली पर एफआईआर का आदेश

बेंगलुरु: बेंगलुरु की विशेष जनप्रतिनिधि अदालत ने शुक्रवार को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और अन्य के खिलाफ चुनावी बॉन्ड के माध्यम से कथित रूप से की गई जबरन वसूली के मामले में एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। यह आदेश जनाधिकार संघर्ष परिषद (जेएसपी) के सह-अध्यक्ष आदर्श अय्यर की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया।

आदर्श अय्यर ने दर्ज करवाई शिकायत

आदर्श अय्यर ने बेंगलुरु की अदालत में शिकायत दर्ज करते हुए मांग की थी कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और अन्य के खिलाफ कार्रवाई की जाए। शिकायत में यह आरोप लगाया गया कि चुनावी बॉन्ड के जरिए जबरन वसूली की गई, जिसमें लोगों को डराकर उनसे धन उगाही की गई। मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने बेंगलुरु के तिलक नगर पुलिस स्टेशन को निर्देश दिया कि वे इस मामले में एफआईआर दर्ज करें और आगे की जांच करें।

42वीं एसीएमएम कोर्ट में दायर की गई थी याचिका

इस मामले की शुरुआत अप्रैल 2024 में हुई थी जब जनाधिकार संघर्ष परिषद ने 42वीं एसीएमएम कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में निर्मला सीतारमण के अलावा प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारियों, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, तत्कालीन भाजपा कर्नाटक अध्यक्ष नलिन कुमार कटील और बीवाई विजयेंद्र के खिलाफ भी शिकायत दर्ज की गई थी।

अदालत का आदेश और अगली सुनवाई की तिथि

अदालत ने शिकायत पर विचार करने के बाद बेंगलुरु पुलिस को इस मामले में एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता बालन ने अदालत के समक्ष अपनी दलीलें प्रस्तुत कीं। मामले की अगली सुनवाई 10 अक्टूबर 2024 तक के लिए स्थगित कर दी गई है।

चुनावी बॉन्ड और विवाद: बीजेपी की किरकिरी

चुनावी बॉन्ड योजना 2018 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई थी। सरकार ने इस योजना को राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद दान को पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से प्रस्तुत किया था। हालांकि, इस योजना में यह स्पष्ट करने का कोई प्रावधान नहीं था कि किसने कितनी राशि का बॉन्ड खरीदा। इससे विपक्षी दलों ने चिंता जताई और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना को रद्द कर दिया था, जिससे बीजेपी की छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा था। विपक्षी दलों ने इस योजना को असंवैधानिक और अनैतिक करार देते हुए इसे चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी के लिए जिम्मेदार ठहराया था।

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