चुनाव से ठीक पहले संघ की 50,000 से ज्यादा बैठकों की रणनीति, भाजपा को मिल रहा सीधा समर्थन
नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव के मतदान में अब कुछ ही घंटे शेष रह गए हैं और राजनीतिक तापमान चरम पर है। आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच मुकाबला बेहद कांटे का माना जा रहा है। इस बीच, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की सक्रियता ने चुनावी समीकरणों को नया मोड़ दे दिया है। संघ के 50,000 से अधिक छोटे-बड़े कार्यक्रमों और बैठकों ने भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने का काम किया है, जिससे अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी के लिए चुनावी चुनौती और बढ़ गई है।
संघ की रणनीति: आठ विभागों में बंटा दिल्ली, 60,000 बैठकों का लक्ष्य
सूत्रों के मुताबिक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने दिल्ली को आठ प्रमुख विभागों में विभाजित किया है। प्रत्येक विभाग के कार्यकर्ताओं को विशेष जिम्मेदारी दी गई है कि वे मतदाताओं तक सीधा संवाद स्थापित करें। इन बैठकों में मोहल्लों, शिक्षण संस्थानों, व्यापारिक केंद्रों, कार्यालयों और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर विशेष रूप से लोगों को राष्ट्रहित में मतदान के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के अनुसार,
“हमारा उद्देश्य मतदाताओं को जागरूक करना है ताकि वे देशहित में सही निर्णय ले सकें। भाजपा एक ऐसी पार्टी है जो राष्ट्रहित में काम कर रही है, इसलिए हम अप्रत्यक्ष रूप से उनके समर्थन में मतदाताओं को प्रेरित कर रहे हैं।”
मतदाताओं तक सीधी पहुंच: छोटे समूहों में प्रभावी संवाद
संघ ने अपने कार्यकर्ताओं को छोटे-छोटे समूहों में बैठकों के आयोजन का निर्देश दिया है। ये बैठकें न केवल घरों और मोहल्लों में, बल्कि कार्यालयों, दुकानों, पार्कों, मंदिरों, स्कूलों और कॉलेजों में भी आयोजित की गई हैं।
प्रमुख बिंदु:
- दिल्ली के प्रत्येक वार्ड में नियमित बैठकें
- स्थानीय मुद्दों पर केंद्रित संवाद
- मतदाताओं से प्रत्यक्ष फीडबैक संग्रह
- भाजपा के पक्ष में सकारात्मक माहौल तैयार करना
इसके अलावा, हर विभाग के प्रभारी से कहा गया है कि वे अपने क्षेत्रों के डाटा और फीडबैक को संघ के प्रदेश मुख्यालय के साथ साझा करें ताकि रणनीति को और सुदृढ़ किया जा सके।
हरियाणा और महाराष्ट्र में दिख चुका है संघ का असर
संघ की चुनावी सक्रियता केवल दिल्ली तक सीमित नहीं है। इससे पहले हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में भी संघ की ऐसी रणनीति ने भाजपा के लिए सकारात्मक परिणाम लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर और महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में हुए चुनावों में संघ के कार्यकर्ताओं ने जमीनी स्तर पर प्रचार अभियान को मजबूती दी थी।
दिल्ली चुनाव में भी संघ की यही सक्रियता भाजपा के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है।
अरविंद केजरीवाल के सामने एंटी-इंकम्बेंसी की चुनौती
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पिछले 10 वर्षों से सत्ता में हैं। अब उनके सामने एंटी-इंकम्बेंसी का प्रभाव एक बड़ी चुनौती के रूप में उभर रहा है। भाजपा इस स्थिति को अपने पक्ष में भुनाने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है।
केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने शिक्षा, स्वास्थ्य, और बिजली-पानी जैसे मुद्दों पर जोर दिया है, लेकिन भाजपा संघ के समर्थन के साथ राष्ट्रवाद और सुरक्षा जैसे बड़े मुद्दों को प्रमुखता दे रही है। इससे केजरीवाल के लिए चुनावी गणित जटिल होता नजर आ रहा है।
अंतिम दौर की तैयारियां: भाजपा के लिए ‘साइलेंट वोटर’ अहम
संघ के कार्यकर्ता जिस तरह से गुप्त बैठकों और साइलेंट कैंपेनिंग के जरिए मतदाताओं तक पहुंच रहे हैं, उससे भाजपा को ‘साइलेंट वोटर’ के रूप में एक बड़ा वर्ग मिल सकता है। ये वो वोटर होते हैं जो सार्वजनिक रूप से अपनी पसंद जाहिर नहीं करते लेकिन मतदान के दिन बड़ी भूमिका निभाते हैं।
चुनावी नतीजों पर संघ के असर का अनुमान
- संघ के कार्यकर्ताओं की गहन सक्रियता भाजपा के लिए अतिरिक्त लाभदायक हो सकती है।
- मतदाताओं को प्रभावित करने की रणनीति चुनावी नतीजों में अहम भूमिका निभा सकती है।
- अरविंद केजरीवाल को सत्ता विरोधी लहर और संघ के प्रभाव दोनों से निपटना होगा।
निष्कर्ष: दिल्ली चुनाव में संघ का असर कितना गहरा?
दिल्ली के इस चुनावी मुकाबले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सक्रियता ने राजनीतिक गलियारों में नई चर्चा छेड़ दी है। अब देखना यह है कि क्या संघ की रणनीति भाजपा को सत्ता के करीब ले जा पाएगी या फिर आम आदमी पार्टी अपनी पकड़ बनाए रखने में सफल रहेगी।
मतदान के बाद ही साफ होगा कि दिल्ली के मतदाताओं ने किसके पक्ष में फैसला सुनाया है।