तुर्की की प्रसिद्ध साप्ताहिक व्यंग्य पत्रिका लेमन के एक हालिया कार्टून को लेकर देश में तीव्र विरोध और अशांति फैल गई है। 26 जून के अंक में प्रकाशित इस कार्टून में दो ऐसे व्यक्तियों को दर्शाया गया है, जिन्हें देखने वालों ने पैगंबर मूसा और पैगंबर मुहम्मद के रूप में पहचाना। इन दोनों को आसमान में हाथ मिलाते हुए दिखाया गया, जबकि नीचे एक जलते शहर और मिसाइलों का चित्रण किया गया। इस चित्र को धार्मिक भावनाओं का अपमान मानते हुए कई धार्मिक समूहों और सरकारी अधिकारियों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
लेमन पत्रिका ने सफाई देते हुए कहा कि कार्टून में दर्शाया गया नाम “मुहम्मद” एक काल्पनिक पात्र का था, जिसका संबंध पैगंबर से नहीं है। पत्रिका के प्रधान संपादक तुन्के अकगुन ने स्पष्ट किया कि यह चित्र एक मुस्लिम व्यक्ति की पीड़ा को उजागर करने के लिए बनाया गया था जो इजरायल के हमलों में मारा गया, और इसका उद्देश्य धार्मिक प्रतीकों का अपमान नहीं था।
इसके बावजूद इस्तांबुल में पत्रिका के कार्यालय के बाहर हिंसक प्रदर्शन हुए। गुस्साए लोगों ने पत्रिका के मुख्यालय पर हमला किया, खिड़कियां तोड़ीं और अंदर घुसने की कोशिश की। पुलिस ने हालात को काबू में करने के लिए रबर की गोलियों और आंसू गैस का इस्तेमाल किया।
गृह मंत्री अली येरलिकाया ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो साझा किया जिसमें कार्टूनिस्ट डोगन पेहलवान को पुलिस द्वारा गिरफ्तार करते हुए दिखाया गया। उन्होंने इस कार्टून को घृणास्पद बताते हुए इसे देश में अशांति फैलाने का प्रयास करार दिया। वहीं, न्याय मंत्री यिल्माज तुन्च ने जानकारी दी कि इस्तांबुल के मुख्य अभियोजक कार्यालय ने इस मामले में तुर्की दंड संहिता की धारा 216 के तहत जांच आरंभ की है, जो धार्मिक मूल्यों का सार्वजनिक रूप से अपमान करना और नफरत फैलाना अपराध मानती है।
इस जांच के तहत छह लोगों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किए गए हैं, जिनमें डोगन पेहलवान, पत्रिका के दो संपादक और एक प्रबंध संपादक शामिल हैं। सोशल मीडिया पर कार्टून के वायरल होने के बाद मामले ने और तूल पकड़ लिया।
लेमन पत्रिका ने इस विवाद पर खेद जताते हुए माफी मांग ली है और यह स्पष्ट किया है कि उनका उद्देश्य किसी धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाना नहीं था। पत्रिका का कहना है कि “मुहम्मद” नाम मुस्लिम समाज में आमतौर पर रखा जाने वाला नाम है और इस चित्र में उसका उपयोग एक सांकेतिक पीड़ित व्यक्ति के तौर पर हुआ था।
यह मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी गंभीरता से देखा जा रहा है और 2015 में फ्रांस की पत्रिका चार्ली हेब्दो पर हुए हमले की याद दिलाता है, जिसमें कार्टून विवाद के चलते 12 लोग मारे गए थे। तुर्की में भी पहले ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जब व्यंग्य पत्रिकाओं या कार्टूनिस्टों को धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोपों में निशाना बनाया गया है, जैसे 2012 में पेंगुएन पत्रिका पर हमला और 2011 में कार्टूनिस्ट बहादिर बारुतेर पर मुकदमा दर्ज होना।
वर्तमान घटनाक्रम ने एक बार फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक संवेदनशीलता के बीच संतुलन की बहस को जीवंत कर दिया है।