सीकर, राजस्थान: सीकर जिले के प्रसिद्ध शक्तिपीठ जीणमाता मंदिर में चल रहे लक्खी मेले के दौरान गुरुवार रात को बत्तीसी संघ और मंदिर ट्रस्ट के पुजारियों के बीच विवाद हो गया। विवाद इतना बढ़ा कि स्थिति को संभालने पहुंचे प्रशासनिक अधिकारियों के साथ धक्का-मुक्की और तोड़फोड़ की घटनाएं भी हुईं। मामला तब बढ़ा जब बत्तीसी संघ के दर्शन के दौरान पूर्व में बनी सहमति का उल्लंघन किया गया।
मंदिर में पुजारियों की संख्या को लेकर बढ़ा विवाद
चैत्र नवरात्रि में षष्ठी तिथि को बत्तीसी संघ की ओर से जीणमाता मंदिर में विशेष पूजा और दर्शन किए जाते हैं। इस बार भी संघ के लोगों ने प्रशासन और मंदिर ट्रस्ट के पदाधिकारियों के साथ बैठक की थी, जिसमें यह सहमति बनी थी कि संघ के दर्शन के समय मंदिर में केवल तीन पुजारी मौजूद रहेंगे। लेकिन जब संघ के लोग दर्शन करने पहुंचे, तो तय संख्या से अधिक पुजारी वहां मौजूद थे।

प्रशासन की ओर से जब दिन में हुई सहमति का पालन करने की बात कही गई और अतिरिक्त पुजारियों को हटाने को कहा गया, तो मंदिर ट्रस्ट के पुजारियों ने इसका विरोध किया। इसी दौरान बत्तीसी संघ के लोग मंदिर में प्रवेश कर गए और वहां मौजूद पुजारियों को हटाने की बात कही, जिससे विवाद और बढ़ गया।
प्रशासन के हस्तक्षेप पर बिगड़ा माहौल
विवाद को बढ़ता देख मौके पर मौजूद दांतारामगढ़ एसडीएम मोनिका सामोर और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों ने बीच-बचाव की कोशिश की, लेकिन स्थिति और बिगड़ गई। मंदिर ट्रस्ट से जुड़े पुजारियों ने अधिकारियों के साथ धक्का-मुक्की की और गुस्से में तोड़फोड़ कर दी।
इसके बाद पुलिस ने सख्ती दिखाते हुए कुछ पुजारियों को हिरासत में लिया। इसके विरोध में मंदिर ट्रस्ट के पदाधिकारियों ने मंदिर के पट बंद कर दिए। हालात तनावपूर्ण होते देख सीकर जिला कलेक्टर मुकुल शर्मा और पुलिस अधीक्षक भुवन भूषण यादव भी देर रात मौके पर पहुंचे।
तीन घंटे बंद रहे मंदिर के पट, श्रद्धालुओं को हुई परेशानी
विवाद के चलते मंदिर के पट तीन घंटे तक बंद रहे, जिससे श्रद्धालुओं को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। हालांकि, प्रशासन और बत्तीसी संघ के बीच वार्ता के बाद मंदिर के पट फिर से खोल दिए गए।
बत्तीसी संघ में बाघोली, पचलंगी, पापड़ा, नीमकाथाना, नयाबास, राणासर जोधपुरा और जीणमाता सहित 32 गांवों के लोग शामिल हैं। ये लोग खुद को मां जीण भवानी का वंशज मानते हैं और जीणमाता मंदिर पर अपना पहला अधिकार समझते हैं।
बत्तीसी संघ की परंपरा और मान्यता
बत्तीसी संघ हर साल चैत्र नवरात्रि के दौरान शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को निशान पदयात्रा निकालता है, जिसमें श्रद्धालु सिर पर जलती हुई सिगड़ी लेकर, ऊंटगाड़ी, ट्रैक्टर-ट्रॉली और पैदल चलकर जीणमाता धाम पहुंचते हैं। यह यात्रा तीन दिन में पूर्ण होती है और षष्ठी तिथि को संघ जीणमाता मंदिर में धोक लगाता है।

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संघ के श्रद्धालु चुनरी अर्पण की परंपरा निभाते हैं और मंदिर ट्रस्ट की देखरेख में पूजा-अर्चना करते हैं। इस वर्ष हुए विवाद से मेले का माहौल तनावपूर्ण हो गया, लेकिन अंततः प्रशासन के हस्तक्षेप से मामला शांत हो गया।
मंदिर प्रशासन और संघ के बीच सहमति बनी
स्थिति को सामान्य करने के लिए एसडीएम मोनिका सामोर ने बत्तीसी संघ और मंदिर ट्रस्ट के बीच वार्ता कराई, जिसमें भविष्य में इस तरह के विवाद से बचने के लिए सहमति बनी। इसके बाद श्रद्धालुओं के लिए मंदिर के पट खोल दिए गए और मेले की गतिविधियां पुनः शुरू हो गईं।