कोलकाता, पश्चिम बंगाल: भारत सरकार द्वारा हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को उजागर करने हेतु गठित सात बहुदलीय प्रतिनिधिमंडलों से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने खुद को अलग कर लिया है।
पार्टी के सूत्रों के अनुसार, टीएमसी नेतृत्व ने अपने लोकसभा सांसद यूसुफ पठान को भी इस विदेश यात्रा में शामिल न होने का निर्देश दिया है। इस निर्णय की कोई आधिकारिक वजह सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन केंद्र सरकार को इसकी सूचना भेज दी गई है।

विदेश नीति केंद्र की जिम्मेदारी: टीएमसी
टीएमसी के वरिष्ठ सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय ने पहले ही प्रतिनिधिमंडल में शामिल होने से इनकार कर दिया था। उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने मीडिया को बताया,
“विदेश नीति केंद्र सरकार के दायरे में आती है। उसे ही इसकी पूरी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। हम राष्ट्रहित में सरकार के हर जरूरी कदम का समर्थन करते हैं और हमारे सैनिकों की वीरता को नमन करते हैं।”
इस बयान से स्पष्ट संकेत मिलता है कि टीएमसी विदेश नीति में सीधी भागीदारी से परहेज कर रही है, हालांकि वह आतंकवाद के विरुद्ध भारत की नीति का विरोध नहीं कर रही।
सरकार का उद्देश्य: पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बेनकाब करना
केंद्र सरकार की योजना के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के सदस्य देशों सहित 32 देशों और यूरोपीय संघ के मुख्यालय ब्रुसेल्स में प्रतिनिधिमंडल भेजे जाएंगे। इनका उद्देश्य भारत की आतंकवाद विरोधी नीति को मजबूती से प्रस्तुत करना और पाकिस्तान के सीमा पार आतंकवाद को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन जुटाना है।

प्रतिनिधिमंडल में कई वरिष्ठ नेता शामिल
इन बहुदलीय प्रतिनिधिमंडलों में कुल 51 नेता शामिल हैं, जिनमें विभिन्न दलों के प्रमुख नेता भी हैं:
- कांग्रेस: शशि थरूर, सुप्रिया सुले
- भाजपा: रविशंकर प्रसाद, बैजयंत पांडा
- जदयू: संजय कुमार झा
- द्रमुक: कनिमोझी
- शिवसेना: श्रीकांत शिंदे
इसके अलावा, पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद, एमजे अकबर, आनंद शर्मा, वी. मुरलीधरन, सलमान खुर्शीद और एसएस अहलूवालिया जैसे गैर-सांसद भी इन प्रतिनिधिमंडलों का हिस्सा हैं।
टीएमसी की दूरी पर उठे सवाल
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि टीएमसी का इस पहल से किनारा करना केंद्र और राज्य के बीच संबंधों में जारी खिंचाव का संकेत हो सकता है। हालांकि पार्टी ने राष्ट्रहित में सरकार के प्रयासों को समर्थन देने की बात कही है, लेकिन प्रतिनिधिमंडलों से अनुपस्थित रहना एक राजनीतिक संदेश भी माना जा रहा है।