राजस्थान में सरकार रिपीट करने का दावा करने वाले अशोक गहलोत का राजनीतिक भविष्य क्या होगा? इसको लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही है। माना यही जा रहा है कि पिछली बार की तरह इस बार भी वह नेता प्रतिपक्ष का पद नहीं लेंगे। जबकि ऐसे संकेत मिले रहे है कि पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा अपने पद पर बने रहेंगे। ऐसे में कयास लगाए जा रहे है कि अशोक गहलोत का राजनीतिक भविष्य क्या होगा। सियासी जानकारों का कहना है कि गहलोत के लिए राहत की बात यह है कि पिछले दो कार्यकाल की तुलना में इस बार कांग्रेस को 69 सीटें मिली है। जबकि एक सीट कांग्रेस समर्थित आईएनएलडी के प्रत्याशी को मिली है। पिछले इससे पहले कांग्रेस को गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुए 56 और 21 सीटें मिली थी।
खड़गे क्या जिम्मेदारी देंगे
संभव है कि पार्टी अशोक गहलोत से आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने को कहे। हालांकि, इसकी संभालना कही है। क्योंकि विधानसभा सदस्य है। पूरे पांच साल है। हालांकि, पार्टी आलाकमान लोकसभा चुनाव के लिए लड़ने का निर्देश देता है तो ऐसे में वो जोधपुर से चुनाव लड़ सकते हैं। जहां से वो पांच बार सांसद रह चुके हैं। जोधपुर में गहलोत का सामना केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से होगा। जिन्होंने पिछली बार उनके बेटे वैभव गहलोत को हराया था। बड़ा सवाल यही है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे अशोक गहलोत को केंद्रीय संगठन में क्या जिम्मेदारी देते हैं! सवा साल पहले अशोक गहलोत का कांग्रेस अध्यक्ष बनना तय था, लेकिन उससे पहले राजस्थान में नया सीएम तय करने के लिए जयपुर में बुलाई गई विधायक दल की बैठक उनके समर्थक विधायकों की बगावत के कारण नहीं हो पाई।
पार्टी महासचिव बनाए जा सकते हैं
सियासी जानकारों का कहना है कि राजस्थान को लेकर कांग्रेस की आगे की रणनीति का सवाल है तो गहलोत के बाद सबसे बड़े नेता के तौर पर सचिन पायलट स्थापित हो चुके हैं। केंद्रीय मंत्री, प्रदेश अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री रह चुके पायलट की नजर अब नेता विपक्ष की कुर्सी पर होगी। इसके अलावा बाड़मेर से आने वाले जाट नेता हरीश चौधरी और राष्ट्रीय महासचिव भंवर जितेंद्र सिंह को भी अगले चुनाव के मद्देनजर राजस्थान में कांग्रेस का भविष्य माना जाता है। माना यह जा रहा है कि कांग्रेस भंवर जितेंद्र सिंह को पीसीसी चीफ बना सकती है। सियासी जानकारों का कहन है कि गहलोत तीन बार पीसीसी चीफ रह चुके हैं। ऐसे में पार्टी आलाकमान गहलोत की सेवाएं राष्ट्रीय स्तर पर लेना चाहेगा। पहले भी गहलोत का पार्टी महासचिव बनाया गया था। गुजरात जैसे अहम राज्य की जिम्मेदारी सौंपी थी।
हिंदुत्व पॉलिटिक्स नहीं पहचान पाए
सियासी जानकारों का कहना है कि बीजेपी ने धर्म और जाति के मुद्दे को जोर शोर से उछाला। गहलोत की नजर में आदिवासी इलाको जैसे उदयपुर, डूगंरपुर, बांसवाड़ा और भीलवाड़ा में हिंदुत्व पॉलिटिक्स नहीं आ सकी?राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अशोक गहलोत की लोकप्रियता का कांग्रेस को कोई फायदा नहीं मिला है। गहलोत सत्ता विरोधी लहर को नहीं भांप पाए। सियासी जानकारों का कहना है कि गहलोत और पायलट की गुटबाजी की वजह से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। पूरे पांच साल जो काम बीजेपी नहीं कर पाई थी, उसकी कमी सचिन पायलट ने पूरा कर दिया है। पेपर लीक का मामला हो या फिर करप्शन और कानून व्यवस्था से जुड़ा मामला। बीजेपी से ज्यादा सचिन पायलट औऱ उनके समर्थक अशोक गहलोत को निशाने पर लेते रहे। बीजेपी को मुद्दा मिलता गया है। कांग्रेस को नुकसान होता गया है। सियासी जानकारों का कहना है कि सचिन पायलट की बगावत के बाद यही माना जाने लगा कि इस भी कांग्रेस सरकार को गुटबाजी ले डूबेगी।