कर्नाटक: कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के दो साल पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित ‘साधना समावेश’ कार्यक्रम में जोश और उत्सव के साथ-साथ राजनीतिक हलचलों ने भी ध्यान खींचा। कार्यक्रम का उद्देश्य सिद्धारमैया सरकार की उपलब्धियों को उजागर करना था, लेकिन वरिष्ठ नेता राहुल गांधी के व्यवहार ने राजनीतिक गलियारों में नई अटकलों को जन्म दे दिया है।

राहुल गांधी का भाषण: सिद्धारमैया और सरकार का जिक्र तक नहीं
इस हाई-प्रोफाइल कार्यक्रम में राहुल गांधी ने अपने पूरे संबोधन में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया या उनकी सरकार का नाम तक नहीं लिया। उन्होंने केवल ‘कांग्रेस सरकार’ की योजनाओं और उपलब्धियों पर फोकस किया, लेकिन राज्य नेतृत्व को कोई सीधा श्रेय नहीं दिया।
यह कदम न केवल हैरान करने वाला था, बल्कि इससे पार्टी के अंदर संभावित मतभेदों की ओर भी संकेत मिलता है।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि कई वरिष्ठ नेता राहुल गांधी की इस चुप्पी से आश्चर्यचकित थे, जबकि कार्यक्रम का मकसद सिद्धारमैया सरकार की छवि को मजबूत करना था।
सिद्धारमैया समर्थकों ने दी अपने नेता को प्रमुखता
जहां राहुल गांधी ने सीएम का नाम नहीं लिया, वहीं सभा को संबोधित करने वाले सिद्धारमैया के वफादार नेताओं ने बीते दो वर्षों में उनके नेतृत्व में हुई योजनाओं और प्रशासनिक सफलताओं पर जोर दिया।
उन्होंने सिद्धारमैया को ‘जन-हितैषी योजनाओं के सूत्रधार’ और ‘सामाजिक न्याय के पैरोकार’ के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे पार्टी के शीर्ष और राज्य नेतृत्व के बीच संदेश में अंतर स्पष्ट दिखाई दिया।
एयरपोर्ट पर प्रोटोकॉल विवाद: हाईकमान की अवहेलना?
कार्यक्रम में शामिल होने के लिए बेंगलुरु पहुंचे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी को एयरपोर्ट पर इंतजार करना पड़ा, जबकि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ दिया गया।
इससे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में असंतोष और बढ़ गया।
सूत्रों के अनुसार, इसे पार्टी हाईकमान के प्रति सम्मान की कमी और ‘राजकीय प्रोटोकॉल’ के दुरुपयोग के रूप में देखा जा रहा है।

खड़गे की टिप्पणी: सरकार को आईना और चेतावनी दोनों
जहां राहुल गांधी ने राज्य सरकार की तारीफ नहीं की, वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सरकार की नीतियों पर सीधा सवाल खड़ा कर दिया।
उन्होंने एससी वर्ग में ‘बेडा जंगमा ग्रुप’ को शामिल किए जाने को दलित विरोधी कदम बताया।
खड़गे ने साफ शब्दों में कहा,
“जातिगत गणना कीजिए, लेकिन सही तरीके से। राहुल गांधी का नाम इसमें खराब नहीं होना चाहिए।”
इस बयान को दो तरह से देखा जा रहा है –
- सिद्धारमैया सरकार को सावधान रहने का संदेश,
- राहुल गांधी की राजनीतिक छवि को सुरक्षित रखने का प्रयास।