Friday, November 22, 2024
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इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद में मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज, हिंदू पक्ष की 18 याचिकाओं पर होगी संयुक्त सुनवाई

मथुरा, 01 अगस्त 2024: मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद के विवादित मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। इस मामले में हिंदू पक्ष ने कुल 18 याचिकाएं दायर की थीं, जिसमें शाही ईदगाह मस्जिद की जमीन को हिंदुओं की संपत्ति बताया गया था और वहां पूजा-अर्चना करने की अनुमति मांगी गई थी।

हिंदू पक्ष की याचिकाओं पर एकसाथ सुनवाई

मुस्लिम पक्ष ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, वक्फ एक्ट, लिमिटेशन एक्ट, और स्पेसिफिक पजेशन रिलीफ एक्ट का हवाला देते हुए हिंदू पक्ष की याचिकाओं को खारिज करने की मांग की थी। हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया है, जिससे अब हिंदू पक्ष की 18 याचिकाओं पर एकसाथ सुनवाई होगी। यह फैसला जस्टिस मयंक कुमार जैन की सिंगल बेंच ने सुनाया है। कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की आर्डर 7 रूल 11 की आपत्ति वाली अर्जी खारिज कर दी, जिसमें याचिकाओं की पोषणीयता को चुनौती दी गई थी।

हिंदू पक्षकारों की दलीलें

हिंदू पक्षकारों ने निम्नलिखित दलीलें दी थीं:

  1. गर्भगृह का क्षेत्र: ईदगाह का पूरा ढाई एकड़ का क्षेत्र भगवान श्रीकृष्ण विराजमान का गर्भगृह है।
  2. भूमि का रिकॉर्ड: मस्जिद कमेटी के पास भूमि का कोई रिकॉर्ड नहीं है।
  3. सीपीसी का आदेश-7: इस याचिका में लागू नहीं होता है।
  4. मंदिर का विध्वंस: मंदिर तोड़कर मस्जिद का अवैध निर्माण किया गया है।
  5. स्वामित्व अधिकार: जमीन का स्वामित्व कटरा केशव देव का है।
  6. वक्फ बोर्ड की वैधता: बिना स्वामित्व अधिकार के वक्फ बोर्ड ने इस भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित किया है।
  7. पुरातत्व विभाग: भवन पुरातत्व विभाग से संरक्षित घोषित है, इसलिए उपासना स्थल अधिनियम लागू नहीं होता।
  8. एएसआई की मान्यता: एएसआई ने इसे नजूल भूमि माना है, इसे वक्फ संपत्ति नहीं कह सकते।

मुस्लिम पक्षकारों की याचिका खारिज

मुस्लिम पक्षकारों ने कोर्ट में निम्नलिखित दलीलें दी थीं, जिन्हें कोर्ट ने खारिज कर दिया:

  1. समझौता: इस जमीन पर 1968 में दोनों पक्षों के बीच समझौता हुआ था, जिसे 60 साल बाद गलत बताना उचित नहीं है।
  2. उपासना स्थल कानून: प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के तहत मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है।
  3. धार्मिक स्थल की पहचान: 15 अगस्त 1947 के दिन जिस धार्मिक स्थल की पहचान और प्रकृति जैसी थी, वैसी ही बनी रहेगी।
  4. लिमिटेशन एक्ट और वक्फ अधिनियम: इस मामले को लिमिटेशन एक्ट और वक्फ अधिनियम के तहत देखा जाए।
  5. वक्फ ट्रिब्यूनल: इस विवाद की सुनवाई वक्फ ट्रिब्यूनल में होनी चाहिए, सिविल कोर्ट में नहीं।

आगे की राह

हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद हिंदू पक्ष की याचिकाओं पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई जारी रहेगी। इस फैसले ने विवाद को एक नया मोड़ दिया है और अब यह देखना होगा कि अदालतें आगे क्या निर्णय लेती हैं। हिंदू पक्ष ने अपनी दलीलों में मजबूत तथ्यों को रखा है और उनकी मांग है कि इस भूमि को हिंदुओं के आधिपत्य में दिया जाए और वहां पूजा-अर्चना की अनुमति दी जाए।

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