नई दिल्ली, 3 जुलाई 2024: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के लिए एक ऐतिहासिक पल! भारत की पहली अंतरिक्ष-आधारित सौर वेधशाला, आदित्य-L1, ने सूर्य और पृथ्वी के बीच एल1 लैग्रेंजियन बिंदु के चारों ओर, यानी हेलो ऑर्बिट का पहला चक्कर सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। यह उपलब्धि ISRO के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के अथक प्रयासों और समर्पण का प्रतीक है।
आदित्य-L1 मिशन
- प्रक्षेपण: 2 सितंबर, 2023
- हेलो ऑर्बिट में प्रवेश: 6 जनवरी, 2024
- पहला हेलो ऑर्बिट चक्र पूरा: 2 जुलाई, 2024
- कक्षा अवधि: 178 दिन
- कक्षा की ऊंचाई: पृथ्वी से 1.5 मिलियन किमी दूर
- मिशन का उद्देश्य: सूर्य का अध्ययन करना
हेलो ऑर्बिट क्या है?
हेलो ऑर्बिट एक विशेष प्रकार की कक्षा है जो सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के बीच संतुलन में स्थित होती है। यह एल1 लैग्रेंजियन बिंदु पर स्थित है, जो पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी का लगभग 1.5 मिलियन किमी है। हेलो ऑर्बिट में, अंतरिक्ष यान को सूर्य का निरंतर, अबाधित दृश्य प्राप्त होता है, जो वैज्ञानिकों को सौर गतिविधि का गहन अध्ययन करने में सक्षम बनाता है।
आदित्य-L1 मिशन का महत्व
आदित्य-L1 मिशन भारत के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह मिशन सूर्य के बारे में हमारी समझ को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान देगा, जो अंतरिक्ष मौसम की भविष्यवाणी, जलवायु परिवर्तन को समझने और अंतरिक्ष यान को विकिरण क्षति से बचाने में मदद करेगा।
ISRO की सफलता
आदित्य-L1 मिशन की सफलता ISRO की बढ़ती क्षमताओं और अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत के नेतृत्व की स्थिति को दर्शाता है। यह मिशन भारत के वैज्ञानिक समुदाय के लिए प्रेरणा का स्रोत है और आने वाले वर्षों में और भी अधिक महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष मिशनों की राह प्रशस्त करेगा।