चिड़ावा: देशभर में तेजी से बढ़ते साइबर क्राइम और डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड के बीच चिड़ावा पुलिस थाने में आयोजित साइबर जागरूकता कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने लोगों को ऑनलाइन ठगी, व्हाट्सअप हैकिंग, APK फाइल फ्रॉड, लोकेशन ट्रेसिंग और फर्जी वीडियो कॉल जैसी नई तकनीकों से आगाह किया। बैठक के दौरान डिजिटल सुरक्षा, डेटा प्रोटेक्शन और साइबर बचाव उपायों पर विस्तार से चर्चा हुई।
केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय की साइबर जागरूकता पहल के तहत चिड़ावा पुलिस थाने में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई। इस कार्यक्रम में साइबर थाना झुंझुनूं से प्रोग्रामर अशोक कुमार और सहायक प्रोग्रामर राजेंद्र सिंह ने साइबर अपराध के बदलते तरीकों और उनसे बचाव के उपायों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि डिजिटल अपराध अब सीधे आम जनता को निशाना बना रहे हैं और ठग नई-नई तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं।
बैठक के दौरान बताया गया कि देशभर में डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड के जरिए लगभग 3,000 करोड़ रुपये की ठगी हो चुकी है। झुंझुनूं जिले में यह आंकड़ा 7.5 करोड़ तक पहुंच चुका है। डिजिटल अरेस्ट के मामलों में शिकायत सीधे केंद्रीय जांच एजेंसी तक जाती है, जिससे यह अपराध बेहद गंभीर श्रेणी में शामिल होता जा रहा है।
अशोक कुमार ने बताया कि अधिकतर मोबाइल उपयोगकर्ताओं को अपने ईमेल का पासवर्ड याद नहीं रहता, जिससे साइबर अपराधी आसानी से खाते को निशाना बना लेते हैं। केवल ईमेल आईडी के आधार पर लोकेशन ट्रेस की जाने की आशंका भी उन्होंने जताई। लोगों को मजबूत पासवर्ड बनाने और पासवर्ड शेयर न करने की सलाह दी गई।
राजेंद्र सिंह ने बताया कि व्हाट्सअप में टू-स्टेप वेरिफिकेशन सक्षम न करने पर खाते हैक होने का बड़ा खतरा रहता है। कई मामलों में साइबर अपराधी व्हाट्सअप ओटीपी के जरिए मोबाइल को पूरी तरह अपने नियंत्रण में ले लेते हैं।
बैठक में यह भी स्पष्ट किया गया कि अनजान APK फाइलें मोबाइल में खोलना सबसे बड़ा साइबर जोखिम है। शादी कार्ड, निमंत्रण पत्र, आरटीओ चालान या किसी भी संदिग्ध फाइल को तुरंत डिलीट करने की सलाह दी गई।
विशेषज्ञों ने कहा कि जरूरत न होने पर मोबाइल डेटा बंद रखना चाहिए। डेटा ऑन रहते ही मोबाइल साइबर अपराधियों की पहुंच में आ जाता है। अभी तक कोई सख्त डेटा प्रोटेक्शन कानून लागू नहीं है, इसलिए सतर्कता ही सबसे बड़ा सुरक्षा उपाय है।
बैठक में बताया गया कि बुजुर्गों को एडल्ट वीडियो कॉल के जरिए ब्लैकमेल करने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। अपराधी वीडियो एडिट कर फर्जी कंटेंट बनाकर परिवार और समाज में फैलाने की धमकी देते हैं, जिससे पीड़ित लोग पैसे देने को मजबूर हो जाते हैं।
चेतावनी दी गई कि भारत का आधिकारिक मोबाइल कोड +91 है। इसके अलावा किसी अन्य देश कोड से आने वाली कॉल न उठाएं। अपराधी घरवालों को यह कहकर डराते हैं कि बच्चे ने अपराध किया है और उसे हिरासत में लिया गया है। डर के कारण लोग बड़ी रकम भेज देते हैं।
प्रोग्रामर अशोक कुमार ने बताया कि साइबर अपराधी बच्चों को बहला-फुसलाकर उनके नाम से बैंक खाता खुलवाते हैं और चेकबुक तथा एटीएम कार्ड अपने पास रख लेते हैं। इस तरह अपराध का पूरा नेटवर्क बच्चों के बैंक खाते से संचालित होता है।
सुझाव दिया गया कि यदि किसी का मोबाइल नंबर बंद हो जाए या नया नंबर ले लिया जाए तो पुराने नंबर को बैंक अकाउंट, आधार कार्ड और अन्य सभी सरकारी-गैरसरकारी दस्तावेजों से तुरंत हटवा देना चाहिए, वरना गंभीर साइबर जोखिम बढ़ जाता है।
बैठक में यह भी बताया गया कि यदि कोई व्यक्ति साइबर क्राइम का शिकार होता है या फोन चोरी अथवा गुम हो जाता है तो सबसे पहले 1930 पर फोन कर शिकायत दर्ज कराएं और फिर ऑफिशियल ईमेल आईडी पर शिकायत भेजें। झुंझुनूं पुलिस अब तक 600 से अधिक मोबाइल फोन रिकवर कर पीड़ितों को वापस दे चुकी है।
बैठक में सीआई आशाराम गुर्जर, हार्डवेयर एसोसिएशन अध्यक्ष महेन्द्र धनखड़, सुनील पचार, सुभाष पंवार, सुरेश पूनिया, आदित्य चौधरी, रमेश देवी, अनिता सैनी, ख्याति केडिया, अनिता डांगी, सुरक्षा सखी, पुलिस मित्र, सीएलजी सदस्य मौजूद रहे।




