नादिमर्ग, जम्मू-कश्मीर: जम्मू-कश्मीर के शोपियां जिले के नादिमर्ग गांव में 21 साल के लंबे अंतराल के बाद कश्मीरी पंडितों की एक भावनात्मक वापसी देखने को मिली। शनिवार को इस गांव के अर्दे नरेश्वर मंदिर में पहली बार मूर्ति स्थापना की गई और विशेष पूजा-पाठ का आयोजन किया गया। 2003 में हुए नादिमर्ग नरसंहार के बाद यह पहली बार था, जब इस गांव के मंदिर में धार्मिक आयोजन हुआ।
अर्दे नरेश्वर मंदिर, जो पिछले दो दशकों से बंद पड़ा था, इस समारोह के दौरान एक बार फिर से श्रद्धालुओं के लिए खोला गया। पूजा के दौरान कश्मीरी पंडितों और स्थानीय निवासियों के बीच एक भावुक माहौल देखने को मिला, जो वर्षों से बिछड़े हुए थे। इस मंदिर में पूजा का आयोजन समुदाय के शांतिपूर्ण अतीत को फिर से जीवित करने के उद्देश्य से किया गया था।
शोपियां के डीएम ने किया अर्दे नरेश्वर मंदिर का दौरा
शोपियां के जिला मजिस्ट्रेट शाहिद सलीम ने इस विशेष पूजा के दौरान अर्दे नरेश्वर मंदिर का दौरा किया। उन्होंने वहां मौजूद भक्तों से बातचीत की और इस आयोजन के ऐतिहासिक महत्व पर चर्चा की। यह मंदिर 2003 में हुए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार के बाद से बंद पड़ा था। शाहिद सलीम ने इस पुनर्निर्माण और मंदिर में हो रहे धार्मिक आयोजन को सांप्रदायिक सद्भाव और पुनर्वास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया।
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2003 का नादिमर्ग नरसंहार और पलायन
नादिमर्ग गांव के कश्मीरी पंडितों की 21 साल बाद इस मंदिर में वापसी ने पुराने जख्मों को भी ताजा कर दिया। 2003 में इस गांव में अज्ञात बंदूकधारियों ने एक भयानक हमला किया था, जिसमें 24 कश्मीरी पंडितों की निर्मम हत्या कर दी गई थी। इस हमले के बाद, बचा हुआ पंडित समुदाय मजबूरी में गांव छोड़ने पर विवश हुआ था। इस घटना ने न केवल इस गांव बल्कि पूरे कश्मीर में गहरा दुख और सदमा छोड़ा था।
हालांकि, कश्मीरी पंडितों ने अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक जड़ों को कभी पूरी तरह से नहीं छोड़ा। तीन दशकों के बाद, मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ और कश्मीरी पंडितों ने पहली बार यहां पूजा का आयोजन किया, जिससे यह संदेश भी गया कि समुदाय अब अपने पुराने दिनों की वापसी की ओर बढ़ रहा है।
सांप्रदायिक सद्भाव और भाईचारे की मिसाल
कश्मीरी पंडितों की वापसी पर स्थानीय मुस्लिम समुदाय ने भी खुशी जाहिर की। स्थानीय लोगों ने मंदिर की देखभाल और उसके पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे का अद्भुत उदाहरण पेश हुआ। एक निजी समाचार चैनल की ग्राउंड रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ कि पंडितों की वापसी पर गांव के मुसलमानों ने उनका स्वागत किया और उनके साथ मिलकर इस मंदिर को फिर से स्थापित करने में मदद की।
नादिमर्ग में यह आयोजन सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। कश्मीरी पंडितों की वापसी और मंदिर की पुनर्स्थापना ने स्थानीय समुदायों के बीच विश्वास और सहयोग को फिर से मजबूत किया है।