नई दिल्ली: भारतीय वायुसेना के पास वर्तमान में लड़ाकू विमानों की कमी गंभीर चुनौती बनती जा रही है। दूसरी ओर, स्वदेशी तेजस लड़ाकू विमानों की आपूर्ति में हो रही देरी ने वायुसेना की क्षमताओं पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस पर वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने रक्षा उत्पादों के विकास में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने और अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) के लिए अधिक वित्तीय संसाधन आवंटित करने की वकालत की है।
असफलताओं से डरना नहीं, समय की पाबंदी जरूरी
21वें सुब्रतो मुखर्जी सेमिनार में बोलते हुए एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने कहा कि अनुसंधान एवं विकास में समय पर प्रगति न होने पर उसकी प्रासंगिकता समाप्त हो जाती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि रक्षा क्षेत्र में तकनीकी विकास का मूल्य तभी है जब वह निर्धारित समयसीमा में पूर्ण हो। “हमें शोधकर्ताओं को अधिक स्वतंत्रता देनी चाहिए और असफलताओं से भयभीत होने के बजाय उनसे सीखना चाहिए। अगर हम समय पर अपने लक्ष्यों को प्राप्त नहीं करेंगे, तो तकनीकी का कोई महत्व नहीं रहेगा,” उन्होंने जोड़ा।

आरएंडडी के लिए बजट का 15% आवंटन आवश्यक
एयर चीफ मार्शल ने अनुसंधान एवं विकास क्षेत्र में अधिक धनराशि खर्च करने पर जोर दिया। वर्तमान में, रक्षा बजट का केवल 5% ही आरएंडडी के लिए खर्च किया जाता है, जो अपर्याप्त है। उन्होंने इसे बढ़ाकर 15% करने का सुझाव दिया और कहा कि निजी भागीदारी को बढ़ावा देने से विकास प्रक्रिया तेज हो सकती है। “हमें अपनी असफलताओं से आगे बढ़ते हुए अधिक प्रतिस्पर्धात्मक माहौल तैयार करना चाहिए।”
पड़ोसी देशों की बढ़ती सैन्य शक्ति पर नजर
वायुसेना प्रमुख ने कहा कि चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देश अपनी सैन्य क्षमताओं को तेजी से बढ़ा रहे हैं। चीन ने हाल ही में छठी पीढ़ी के स्टील्थ लड़ाकू विमान की सफल उड़ान का प्रदर्शन किया है, जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी हैं। उन्होंने कहा, “यह केवल संख्या का मामला नहीं है; उनकी तकनीक भी तेजी से उन्नत हो रही है। हमें इस बढ़त से सावधान रहना होगा।”
तेजस लड़ाकू विमानों की डिलीवरी में देरी
तेजस विमानों की आपूर्ति में देरी पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, “1984 में तेजस परियोजना की शुरुआत हुई थी और पहली उड़ान 2001 में भरी गई। इसके 15 साल बाद, 2016 में तेजस को वायुसेना में शामिल करना शुरू किया गया। आज 2024 है, और हमारे पास अभी तक प्रारंभिक 40 विमानों की पूरी आपूर्ति नहीं हो पाई है।” उन्होंने उत्पादन क्षमता में सुधार की आवश्यकता को रेखांकित किया और कहा कि हमें अधिक स्रोतों से प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करनी होगी।
निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने पर जोर
वायुसेना प्रमुख ने रक्षा उत्पाद निर्माण में निजी क्षेत्र की भूमिका बढ़ाने पर जोर दिया। उनका मानना है कि यह कदम उत्पादन दर को गति देगा और नई तकनीकों के विकास में सहायक होगा। उन्होंने कहा कि निजी निवेश से उत्पादन क्षमता में सुधार होगा और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में देश का कदम और मजबूत होगा।