नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) द्वारा मदरसों को बंद करने की सिफारिश पर एक अहम फैसला सुनाते हुए फिलहाल इस पर रोक लगा दी है। मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की बेंच ने केंद्र और सभी राज्यों से इस मुद्दे पर चार हफ्तों के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि इस दौरान किसी भी राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचनाओं को भी स्थगित रखा जाएगा।
NCPCR की सिफारिश और विवाद
NCPCR ने शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) का पालन न करने के आधार पर मदरसों को अनुपयुक्त और अयोग्य करार दिया था। आयोग ने विभिन्न राज्यों को पत्र लिखकर इन मदरसों में औपचारिक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी को रेखांकित किया था, जिसमें यह दावा किया गया कि इन संस्थानों में बच्चों को अच्छी और समुचित शिक्षा नहीं मिल पा रही है। इसके परिणामस्वरूप, कुछ राज्यों ने मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित करने के आदेश जारी किए थे, जिससे विवाद खड़ा हुआ।
जमीयत की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने दी दलील
इस फैसले को चुनौती देने के लिए मुस्लिम संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जमीयत की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने अदालत में दलील दी कि यह मामला सभी राज्यों से संबंधित है और इस पर सभी राज्य पक्षकार बनाए जाएं। उन्होंने यह भी कहा कि आयोग की सिफारिश और कुछ राज्यों द्वारा उठाए गए कदम अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों की स्वायत्तता का उल्लंघन करते हैं।
अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि कई राज्य मदरसों को लेकर नीतिगत बदलाव कर रहे हैं, जिससे इन संस्थानों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सहमति जताते हुए केंद्र और सभी राज्यों को नोटिस जारी किया और चार हफ्ते के भीतर जवाब मांगा है।
राज्यों के आदेश भी रहेंगे स्थगित
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा सरकार द्वारा जारी किए गए उन निर्देशों को भी स्थगित कर दिया है, जिनमें कहा गया था कि गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने 7 जून और 25 जून 2024 को NCPCR की सिफारिशों पर भी फिलहाल कोई कार्रवाई न करने का आदेश दिया है। इस मामले की अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद होगी, जब केंद्र और राज्यों से प्राप्त जवाबों पर अदालत विचार करेगी।
NCPCR के तर्क
NCPCR ने अपनी दलील में कहा था कि मदरसों में बच्चों को वह शिक्षा नहीं मिल पा रही है, जो उन्हें भविष्य के लिए तैयार कर सके। आयोग ने दावा किया कि ये संस्थान औपचारिक शैक्षिक माहौल और जरूरी सुविधाएं प्रदान करने में असमर्थ हैं, जिससे बच्चे अपने शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित हो रहे हैं। आयोग के अनुसार, मदरसों में आवश्यक शिक्षण-शिक्षण प्रक्रिया का अभाव है, जिससे छात्रों के समग्र विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।