राजस्थान में सीएम पद के दावेदार माने जाले केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल को राजस्थान हाईकोर्ट से झटका लगा है। राजस्थान हाईकोर्ट जस्टिस प्रवीर भटनागर ने केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल की ओर से दायर याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए पुन: जांच के आदेश को अपास्त (निरस्त) कर दिया है। इसके साथ ही मामला एसीबी कोर्ट बीकानेर को सुनवाई के लिए भेज दिया गया। कोर्ट ने एसीबी में दर्ज एफआईआर को निरस्त करने से इनकार कर दिया। जस्टिस प्रवीर भटनागर की एकलपीठ के समक्ष याचिकाकर्ता मंत्री अर्जुन राम मेघवाल की ओर से दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश पारित किया गया।बता दें विधानसभा के पूर्व स्पीकर कैलाश मेघवाल ने भी कुछ दिनों पहले अर्जुन मेघवाल पर कलेक्टर रहते हुए भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे।
राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता एमए सिद्दकी ने पैरवी करते हुए बताया कि साल 2007 में अर्जुन राम मेघवाल की पोस्टिंग चूरू में बतौर कलेक्टर थी। तब राज्य सरकार से उन्हें निर्देश मिले कि चूरू में 18 सैनिकों और उनके परिजनों को प्लॉट आवंटन का मामला अटका हुआ है। इसका जल्द निपटारा किया जाए। सरकार की भावना थी कि सेना में जो सेवा करके आते हैं, उन्हें रहने के लिए जमीन देनी है। योजना के अनुसार सैनिक बस्ती में 60 प्रतिशत सैनिकों के लिए और 40 प्रतिशत अन्य लोगों के लिए प्लॉट आरक्षित रखे गए थे। सरकार ने निर्देश दिए कि सैनिकों और उनके परिजनों को जल्द से जल्द प्लॉट का आवंटन कर पट्टे जारी किए जाएं। कलेक्टर अर्जुन राम मेघवाल की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई। जिसमें एडीएम सहित अन्य अधिकारी और सेना के रिटायर्ड अफसरों को शामिल किया गया।
मंत्रीकमेटी ने सरकार के निर्देश मिलते ही काम शुरू कर दिया। पात्र सैनिकों और उनके परिवारों को अलॉटमेंट शुरू कर दिए गए। आवंटन का काम लगभग पूरा हो चुका था, लेकिन अर्जुन राम मेघवाल की अध्यक्षता वाली कमेटी पर सैनिक बस्ती में प्लॉट अलॉटमेंट को लेकर भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे। अर्जुन राम मेघवाल के सांसद बनने के बाद वर्ष 2010 में मेजर हाकिम अली खान ने सैनिक बस्ती के संबंधित प्लॉट के अलॉटमेंट में भ्रष्टाचार की शिकायत भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) में की। शिकायत में हाकिम अली ने प्लॉट अलॉटमेंट में मिलीभगत कर कम रेवेन्यू वसूलने के आरोप लगाए।
शिकायत के आधार पर एसीबी ने जांच शुरू की। जांच भी आईपीएस के स्तर के अधिकारी ने की. तत्कालीन एसीबी अफसरों ने जांच के दौरान सांसद बन चुके अर्जुन राम मेघवाल के बयान दर्ज किए। करीब एक साल तक जांच चली. वर्ष 2011 में एसीबी ने इस मामले में एफआर लगाकर फाइल कोर्ट में पेश कर दी। एसीबी ने कहा कि इस मामले में कोई आरोप नहीं बनता, कमेटी का काम अलॉटमेंट करने का था, रेवेन्यू वसूलने का नहीं। इसलिए सीधे तौर पर कमेटी अध्यक्ष (अर्जुन राम मेघवाल) और अन्य मेंबर के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता।
एसीबी की फाइनल रिपोर्ट के बाद शिकायतकर्ता ने एसीबी कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो कोर्ट ने 25 अक्टूबर, 2013 को पुन: जांच के आदेश दिए। जिस पर एसीबी ने दुबारा जांच के बाद अंतिम रिपोर्ट पेश कर दी, लेकिन इस बार भी मेघवाल को क्लीन चिट दी गई। जिसके खिलाफ प्रोटेस्टे पिटीशन पेश हुई, तो एसीबी कोर्ट ने 8 जुलाई, 2014 को पुन: जांच के आदेश दिए थे। जिसके खिलाफ मंत्री मेघवाल ने राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर में विविध आपराधिक याचिका पेश कर दी। जिसमें प्रारम्भिक सुनवाई के बाद 6 अगस्त, 2014 को हाईकोर्ट ने एसीबी कोर्ट के आदेश पर स्टे दिया था।
एसीबी कोर्ट के आदेश के खिलाफ पेश याचिका पर जस्टिस भटनागर की कोर्ट में विस्तृत सुनवाई हुई. राज्य सरकार की ओर से एएजी एमए सिद्दकी ने पैरवी की। कोर्ट ने मामले पर सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता मंत्री मेघवाल की ओर से एफआईआर निरस्त करने की प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया गया। एसीबी कोर्ट की ओर से 8 जुलाई, 2014 को पारित आदेश को अपास्त कर दिया। मामले को पुन: सुनवाई के लिए एसीबी कोर्ट बीकानेर को भेजते हुए कानून सम्मत सुनवाई कर आदेश पारित करने के निर्देश दिए।