उदयपुरवाटी 16 जून: आषाढ़ सुदी गुप्त नवरात्र के पावन अवसर पर देश के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल सकराय धाम की पावन धरा पर मां शाकम्भरी के दरबार में हवनात्मक सहस्त्र चण्डी महायज्ञ का आयोजन किया जाएगा।
आगामी 6 जुलाई से 15 जुलाई, 2024 तक इस 9 कुण्डीय सहस्त्र चण्डी महायज्ञ के लिए रविवार, 16 जून को भूमि पूजन समारोह का आयोजन किया गया। भूमि पूजन कार्यक्रम में दयानाथ जी महाराज (शाकंभरी माता मन्दिर, सकराय धाम), श्री अग्र पीठाधीश्वर राघवाचार्य जी वेदांती (जानकी नाथ जी का बड़ा मन्दिर, रैवासा), अवधेशाचार्य जी महाराज (सूर्य मन्दिर, लोहार्गल), चेतन नाथ जी महाराज (सिद्धेश्वर आश्रम, मुकंदगद), जीत नाथ जी महाराज डूंडलोद, आचार्य पंडित विक्रम शास्त्री (यागिक) श्रीमाधोपुर, पंडित आदित्य शर्मा रैवासा धाम आदि की पावन उपस्थिति में संपन्न हुआ। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में उदयपुरवाटी सहित शेखावाटी क्षेत्र की विशिष्ट धार्मिक विभूतियां, गणमान्यजन और मैया के भक्त पधारे थे।
मां शाकम्भरी सेवा समिति, सकराय धाम (रजि.) के तत्वाधान में किया जाएगा आयोजन
सहस्त्र चण्डी महायज्ञ का आयोजन मां शाकम्भरी सेवा समिति, सकराय धाम (रजि.) के तत्वाधान में किया जा रहा है। इस महायज्ञ के लिए गठित समिति की कोर कमेटी की ओर से जानकारी देते हुए बताया गया कि कार्यक्रम के लिए देश भर से शाकम्भरी माता के हजारों भक्तों का आगमन होगा। समिति द्वारा यज्ञ में शामिल होने वाले सभी भक्तों से सम्पर्क किया जा रहा है। आयोजन की तैयारियों में जुटे सभी पदाधिकारी व कार्यकर्ता अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं कि कार्यक्रम में अधिक से अधिक संख्या में भक्तगण पधारें। इसके साथ ही कोर कमेटी द्वारा बताया गया है कि कार्यक्रम को भव्य और विशाल बनाने के लिए सन्तों-महात्माओं के सान्निध्य में आगे की तैयारियों को अन्तिम रूप दिया जा रहा है।
महाभारत काल में युधिष्ठिर ने की थी यहां मातारानी की पूजा
आपको बता दें कि झुंझुनू जिले के उदयपुरवाटी कस्बे से 15 किलोमीटर दूर अरावली की पहाड़ियों के बीच सिद्ध शक्तिपीठ मां शाकम्भरी का प्राचीन मन्दिर स्थित है, जो कि देश-दुनिया में अपना अलग ही स्थान रखता है। यहां मां शाकम्भरी रुद्राणी और ब्रह्माणी के रूप में विराजमान हैं। माता रानी यहां अपने सौम्य रूप में विराजित हैं। इसे सकराय माताजी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, महाभारत काल में पाण्डव अपने पापों (अपने भाईयों और परिजनों के वध) से मुक्ति पाने के लिए धार्मिक स्थलों की यात्रा में अल्प प्रवास के लिए अरावली की पहाड़ियों में भी रुके थे। इस दौरान युधिष्ठिर ने पूजा-अर्चना के लिए मां शर्करा की स्थापना की थी। इसी को अब शाकम्भरी तीर्थ के नाम से जाना जाता है। यह स्थान अब आस्था का बहुत बड़ा केन्द्र बन चुका है।