मंड्रेला, 12 मार्च, 2025: झुंझुनू जिले की पिलानी विधानसभा क्षेत्र की मंड्रेला ग्राम पंचायत को नगरपालिका का दर्जा दिए जाने की घोषणा हो गई है। वित्त एवं विनियोग विधेयक पर चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने आज विधानसभा में झुंझुनू जिले की मलसीसर, बुहाना और मंड्रेला ग्राम पंचायतों को नगरपालिका में क्रमोन्नत किए जाने की घोषणा की। मुख्यमंत्री द्वारा की गई घोषणा के बाद आज शाम मंड्रेला में भाजपा कार्यकर्ताओं ने आतिशबाजी की साथ मिठाई बांट कर जश्न मनाया।
सरपंच कुलदीप सिंह शेखावत ने बताया कि कस्बेवासी लम्बे समय से मंड्रेला को नगरपालिका बनाने की मांग कर रहे थे। नगरपालिका बनने पर अब कस्बे का समुचित विकास हो पाएगा। लोगों की सुविधाओं में बढ़ोतरी होगी और समस्याओं का भी निदान होगा।

नगरपालिका से ग्राम पंचायत बना मंड्रेला
आपको बता दें कि मंड्रेला प्रदेश का ऐसा पहला और संभवतः एकमात्र कस्बा है जिसे नगरपालिका से वापस ग्राम पंचायत बनाया गया था। दरअसल वर्ष 1976 में प्रदेश के तत्कालीन स्वायत्त शासन मंत्री व मंडावा विधायक रामनारायण चौधरी ने मंड्रेला को नगरपालिका बनवाया था। लेकिन चुंगी नाके को लेकर व्यापारियों के विरोध के चलते 1984 में इसे फिर से ग्राम पंचायत बना दिया गया। और तब से यह कस्बा ग्राम पंचायत ही रहा। हालांकि लम्बे समय से यहां के निवासी इसे फिर से नगरपालिका बनाए जाने की मांग कर रहे थे।
तत्कालीन स्वायत्त शासन मंत्री रामनारायण चौधरी ने मंड्रेला को 1976 में पालिका का दर्जा दिलवाया था। बताया जाता है कि तब उनके परिवार का एक सदस्य गम्भीर रूप से बीमार हो गया था। जिसका उपचार मुम्बई के प्रसिद्ध बॉम्बे हॉस्पिटल में हुआ। हॉस्पिटल की व्यवस्थाओं से खुश मंत्री चौधरी ने अस्पताल के डायरेक्टर मंड्रेला निवासी चिरंजीलाल जोशी से कहा कि कोई काम बताइए। तब जोशी की मांग पर ही मंत्री ने मंड्रेला को 1976 में नगरपालिका बनवा दिया।
रघुवीर सिंह निर्वाण मंड्रेला के पहले चेयरमैन थे और पालिका के पहले ईओ दयाचंद नेण थे। तत्कालीन सरपंच रघुवीर सिंह निर्वाण को चेयरमैन बनाया दिया गया था। कस्बे के बालाजी मंदिर के पीछे बने एक मकान में पालिका का भवन चलने लगा था। सफाई कर्मचारी भी लगाए गए थे।

पालिका ने लगाई चुंगी, व्यापारियों ने विरोध किया तो 1984 में पंचायत बना दी
वर्ष 1980 में नगरपालिका की ओर से गांव के मुख्य मार्गों पर चुंगी नाके बनाए गए थे। जिससे गांव के व्यापारियों को बाहर से सामान लाने पर चुंगी देनी पड़ती थी। इससे परेशान होकर व्यपारियों ने इसकी शिकायत की और उन्होंने फिर से पालिका को पंचायत बनवाने की मांग कर दी, ताकि उन्हें चुंगी नहीं देने पड़े। हालांकि यहां के ग्रामीणों ने इस पर एतराज जताया। कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया। हाइकोर्ट से स्टे ले लिया। लेकिन यह स्टे वर्ष 1984 तक ही चला।
इसके बाद सरकार बदल गई और नई सरकार ने पालिका को फिर से पंचायत बना दिया। नगरपालिका के कर्मचारियों का अन्य जगह स्थनांतरण कर दिया। तब से यह ग्राम पंचायत ही है।
वर्तमान में कस्बे की आबादी करीब 35 हजार है और 12 हजार से अधिक मतदाता हैं, 25 वार्ड बने हुए हैं। राज्य सरकार की ओर से 2021 में निकायों के लिए बनाए गए पैरामीटर्स के मुताबिक किसी भी नगरपालिका के लिए कम से कम 10 हजार और अधिकतम एक लाख जनसंख्या होनी चाहिए। मंड्रेला इस मापदंड को पूरा कर रहा है। यही वजह रही कि कस्बेवासियों की मांग पर मंड्रेला को एक बार फिर नगरपालिका का दर्जा दिया गया है।