मुंबई: महाराष्ट्र की सियासत में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। इसकी वजह बना है उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे को एनडीए में वापसी का खुला न्योता देना और इसके अगले ही दिन ठाकरे से उनकी बंद कमरे में 20 मिनट की मुलाकात होना। इस मुलाकात में उद्धव के साथ उनके पुत्र व पूर्व मंत्री आदित्य ठाकरे भी मौजूद रहे। हालांकि इस बैठक को लेकर किसी भी पक्ष ने आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इसके पीछे मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर परोक्ष दबाव बनाना भी एक उद्देश्य हो सकता है।
दरअसल, 2022 में शिवसेना में विभाजन के बाद एकनाथ शिंदे ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी और मुख्यमंत्री बने थे। वहीं उद्धव ठाकरे महाविकास अघाड़ी के साथ विपक्ष में चले गए। उस समय फडणवीस को उपमुख्यमंत्री पद से संतोष करना पड़ा था। लेकिन हाल ही में जब महाराष्ट्र में सत्ता पुनर्गठन हुआ, तो फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाया गया और शिंदे को डिप्टी सीएम पद देना पड़ा। तभी से दोनों नेताओं के बीच अनबन की खबरें समय-समय पर सामने आती रही हैं।
फरवरी में फडणवीस ने शिंदे के मुख्यमंत्री रहते हुए मंजूर किए गए जालना के खारपुडी प्रोजेक्ट की जांच के आदेश दिए थे, जिसकी लागत लगभग 900 करोड़ रुपये थी। इसके अलावा, एसटी महामंडल के लिए 1310 बसों की खरीद का निर्णय भी रद्द कर दिया गया था। ‘आनंदाच शिधा योजना’ की समीक्षा के आदेश ने भी संकेत दिए कि फडणवीस शिंदे की कई नीतियों पर सवालिया नजर रखते हैं।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि उद्धव ठाकरे को एनडीए में लाने की कोशिश न केवल एनडीए की स्थिति को और मजबूत करेगी, बल्कि ठाकरे परिवार की विरासत को भी पुनः बीजेपी के साथ जोड़ देगी। इससे न केवल शिवसेना के पारंपरिक मतदाताओं में प्रभाव बनेगा, बल्कि शिंदे पर भी संगठनात्मक और राजनीतिक दबाव डाला जा सकेगा।
बीते वर्षों में जब तक शिवसेना और बीजेपी साथ थीं, तब तक फडणवीस और ठाकरे के बीच रिश्ते सामान्य रहे। उनके पहले कार्यकाल में दोनों दलों ने बिना किसी विशेष विवाद के राज्य की सत्ता चलाई। यही वजह है कि अब फिर से फडणवीस इस पुराने गठबंधन को पुनर्जीवित करना चाहते हैं।
उधर, एकनाथ शिंदे के रुख को लेकर अब तक कोई स्पष्टता नहीं है, लेकिन उनके कई फैसलों को सरकार बनने के बाद पलटना कहीं न कहीं उनके लिए असहज स्थिति पैदा कर रहा है। यह भी देखा गया कि मुख्यमंत्री बनाए जाने के वक्त शिंदे मुंबई छोड़कर अपने गांव चले गए थे, जिससे यह संकेत गया कि वे फैसले से असंतुष्ट हैं।
अब फडणवीस की ओर से उद्धव ठाकरे को दिया गया ऑफर और फिर हुई मुलाकात महाराष्ट्र की राजनीति में आने वाले बड़े बदलाव का संकेत माना जा रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ठाकरे एनडीए के न्योते को स्वीकार करेंगे या फिर यह केवल एक दबाव की रणनीति थी। लेकिन इतना तय है कि इस घटनाक्रम ने एक बार फिर से राज्य की सत्ता को लेकर नए समीकरणों की जमीन तैयार कर दी है।
महाराष्ट्र की राजनीति एक नए मोड़ पर खड़ी है, जहां पुराने साथी फिर से करीब आ सकते हैं और हालिया सहयोगी अलग हो सकते हैं। इस बदलते परिदृश्य पर सभी राजनीतिक दलों की नजरें टिकी हैं।