Thursday, November 21, 2024
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पेरिस ओलंपिक 2024: निशा दहिया हुईं प्रतियोगिता से बाहर, ब्रॉन्ज मेडल की उम्मीदें टूटीं

पेरिस ओलंपिक 2024 में सोमवार (5 अगस्त) भारतीय पहलवान निशा दहिया ने वूमेन्स फ्रीस्टाइल 68 किग्रा के क्वार्टर फाइनल में अदम्य साहस और संकल्प का प्रदर्शन किया। उनका मुकाबला उत्तर कोरिया की पहलवान पाक सोल गम से था। निशा ने शुरुआती लीड ली और एक समय 8-2 से आगे थीं, लेकिन एक खतरनाक चोट ने उनके सपनों को चूर-चूर कर दिया।

मैच का नाटकीय मोड़

मैच के अंतिम क्षणों में निशा दहिया के कंधे में गंभीर चोट लग गई। उस समय, निशा का हाथ उठाना भी मुश्किल हो गया था, लेकिन उन्होंने मैदान नहीं छोड़ा। उनके कंधे में दर्द के बावजूद, वह फिर से खड़ी हुईं और मुकाबले को जारी रखा। केवल एक मिनट शेष था, लेकिन कोरियाई पहलवान ने इस मौके का फायदा उठाते हुए 10-8 की लीड बना ली। निशा अंततः यह मैच हार गईं और मैट से नम आंखों के साथ नीचे उतरीं। उनका यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और लोगों ने उनके हौंसले की तारीफ की।

मेडल की उम्मीदें समाप्त

निशा दहिया अब पेरिस ओलंपिक में मेडल नहीं जीत सकेंगी। क्वार्टर फाइनल में हारने के बाद उन्हें रेपचेज राउंड का मौका भी नहीं मिलेगा, क्योंकि पाक सोल गम सेमीफाइनल में हार गई हैं। रेपचेज राउंड के तहत, अगर पाक सोल गम फाइनल में पहुंचतीं, तो निशा को ब्रॉन्ज मेडल के लिए खेलने का मौका मिलता। दुर्भाग्यवश, ऐसा नहीं हो सका।

मुकाबले की शुरुआत

25 वर्षीय निशा दहिया ने पहले राउंड में यूक्रेन की तेतियाना सोवा के खिलाफ जीत हासिल की थी। उन्होंने 6-4 से जीत दर्ज की, जिसमें उन्होंने आखिरी क्षणों में तेतियाना को मैट से बाहर निकालकर निर्णायक अंक हासिल किए थे। क्वार्टर फाइनल में भी निशा ने शुरूआत में उत्तर कोरियाई पहलवान के खिलाफ 4-0 की बढ़त बनाई और पहले पीरियड में रक्षात्मक खेलते हुए उसे कोई मौका नहीं दिया। लेकिन दूसरे पीरियड में चोट ने उनकी जीत की संभावनाओं को समाप्त कर दिया।

रेपचेज प्रणाली

रेपचेज प्रणाली कुश्ती की एक अनूठी प्रणाली है, जिसमें प्री-क्वार्टर फाइनल या बाद के राउंड में हारने वाले पहलवानों को कांस्य पदक के लिए एक और मौका मिलता है। हालांकि, यह मौका केवल तब मिलता है जब वे जिस पहलवान से हारे हैं, वह फाइनल में पहुंच जाए। कुश्ती में ड्रॉ रैंकिंग के आधार पर नहीं होता है, जिससे कभी-कभी दो टॉप रैंकिंग प्लेयर शुरुआती राउंड में ही भिड़ जाते हैं। इस प्रणाली को बीजिंग ओलंपिक 2008 में लागू किया गया था।

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