नेपाल: नेपाल में एक बार फिर से राजनीतिक भूचाल आया है। लोकतंत्र बहाल होने के बाद से आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ जब नेपाल में किसी प्रधानमंत्री ने बिना किसी विवाद सरकार चलाई हो। इस समय प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड की सत्ता भी खतरे में है। माना जा रहा है कि भारत विरोधी केपी शर्मा ओली एक बार फिर से प्रधानमंत्री बन सकते हैं।
केपी शर्मा ओली, जो पहले भी प्रधानमंत्री रह चुके हैं, ने मौजूदा प्रचंड सरकार को सत्ता से बाहर करने के लिए और फिर से प्रधानमंत्री बनने के लिए कांग्रेस के साथ रातों-रात गठबंधन कर लिया है। हालांकि, प्रधानमंत्री प्रचंड ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया है और कहा है कि वह संसद में एक बार फिर से विश्वास मत हासिल करना चाहेंगे। यदि वाकई ऐसा होता है तो यह उनका पांचवां विश्वास मत होगा।
नेपाली राजनीति में अचानक बदलाव
नेपाली कांग्रेस और नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (यूनिफाइड मार्क्सवादी-लेनिनवादी) (सीपीएन-यूएमएल) ने रातों-रात एक नए गठबंधन का ऐलान कर दिया है, जिससे प्रधानमंत्री प्रचंड की सरकार अल्पमत में आ गई है। हैरानी की बात यह है कि सिर्फ चार महीने पहले ही केपी शर्मा ओली ने प्रधानमंत्री प्रचंड की पार्टी सीपीएन माओवादी को सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया था और अब उन्होंने समर्थन वापस ले लिया है।
नेपाली मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा और सीपीएन-यूएमएल के अध्यक्ष केपी शर्मा ओली ने आधी रात को समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। नेपाली कांग्रेस के पूर्व विदेश मंत्री नारायण प्रकाश सऊद ने बताया कि 78 वर्षीय देउबा और 72 वर्षीय ओली – दोनों पूर्व प्रधानमंत्री – संसद में सरकार के बचे कार्यकाल के लिए बारी-बारी से प्रधानमंत्री पद साझा करने पर सहमत हुए हैं। 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में सीपीएन-यूएमएल के पास 78 सीटें हैं जबकि नेपाली कांग्रेस के पास 89 सीटें हैं। उनकी संयुक्त ताकत 167 है, जो बहुमत के लिए जरूरी 138 सीटों से काफी ज्यादा है।
प्रचंड का प्रतिक्रिया
गठबंधन होने के बाद सीपीएन-यूएमएल ने प्रधानमंत्री प्रचंड से पद छोड़ने का आग्रह किया है, ताकि संवैधानिक प्रावधान के अनुसार नई सरकार बनाई जा सके। इसने सभी राजनीतिक दलों से देश में राजनीतिक स्थिरता को मजबूत करने के लिए ओली के नेतृत्व में “राष्ट्रीय सरकार” में शामिल होने का भी आह्वान किया है। हालांकि, नेपाली कांग्रेस और सीपीएन-यूएमएल के बीच समझौते के बावजूद प्रचंड ने पद छोड़ने से इनकार कर दिया है। सीपीएन माओवादी सेंटर पार्टी के सचिव गणेश शाह ने बताया कि उन्होंने एक बैठक में अपनी पार्टी के पदाधिकारियों से कहा कि वह पद से इस्तीफा देने के बजाय संसद में विश्वास मत का सामना करना पसंद करेंगे। शाह ने पीएम के हवाले से कहा कि सरकार को गिराने और नेपाल में अस्थिरता पैदा करने की साजिश रची गई है।
ओली और देउबा की डील
राजनीतिक रूप से कमजोर हिमालयी देश नेपाल में नई ‘राष्ट्रीय आम सहमति वाली सरकार’ बनाने के लिए आधी रात को हुए समझौते का मकसद प्रचंड को सत्ता से बेदखल करना था। ओली और देउबा ने दोनों दलों के बीच संभावित नए राजनीतिक गठबंधन की जमीन तैयार करने के लिए मुलाकात की थी, जिसके बाद ओली की सीपीएन-यूएमएल ने प्रचंड के नेतृत्व वाली सरकार को समर्थन देने के बमुश्किल चार महीने बाद ही उससे नाता तोड़ लिया।
समझौते के तहत, ओली डेढ़ साल तक नई ‘राष्ट्रीय आम सहमति वाली सरकार’ का नेतृत्व करेंगे। ओली के कार्यकाल में, सीपीएन-यूएमएल प्रधानमंत्री पद और वित्त मंत्रालय सहित कुछ और अहम मंत्रालयों को संभालेगी। वहीं, समझौते के तहत नेपाली कांग्रेस, गृह मंत्रालय समेत दस मंत्रालयों की देखरेख करेगी। नेपाली कांग्रेस के नेता ने बताया कि सीपीएन-यूएमएल कोशी, लुंबिनी और करनाली प्रांतों में सरकार बनाएगी जबकि नेपाली कांग्रेस बागमती, गंडकी और सुदूर-पश्चिमी प्रांतों का नेतृत्व करेगी।
नया राजनीतिक समीकरण
नए गठबंधन ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश कल्याण श्रेष्ठ के नेतृत्व में चुनाव प्रक्रियाओं और संविधान में संशोधन पर सुझाव देने के लिए एक समिति भी बनाई है। चार सदस्यीय टास्क फोर्स ने सत्ता-साझेदारी व्यवस्था, संविधान में प्रस्तावित संशोधन, चुनाव प्रणाली की समीक्षा और प्रांतीय विधानसभाओं के आकार पर चर्चा का विवरण देने वाला एक मसौदा समझौता तैयार किया है।