श्रीनगर, जम्मू-कश्मीर: जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने आतंकवाद के प्रति ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति को सख्ती से लागू करते हुए एक और कड़ा कदम उठाया है। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने मंगलवार को तीन सरकारी कर्मचारियों को सेवा से बर्खास्त कर दिया, जिन पर आतंकी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन की मदद करने के गंभीर आरोप हैं। बर्खास्त किए गए कर्मचारियों में एक पुलिस कॉन्स्टेबल, एक सरकारी शिक्षक, और एक सरकारी मेडिकल कॉलेज में तैनात कर्मचारी शामिल हैं।
1. मलिक इश्फाक नसीर: पुलिस की वर्दी में आतंकी मददगार
मलिक इश्फाक नसीर, जो वर्ष 2007 में जम्मू-कश्मीर पुलिस में भर्ती हुआ था, लश्कर-ए-तैयबा का ओवरग्राउंड वर्कर था। उसका भाई मलिक आसिफ नसीर, जो पाकिस्तान में लश्कर का प्रशिक्षित आतंकी था, 2018 में मारा गया था। जांच में सामने आया कि इश्फाक ने वर्दी का दुरुपयोग करते हुए लश्कर के लिए सुरक्षा बलों की खुफिया जानकारी, हथियार, और लॉजिस्टिक सपोर्ट उपलब्ध कराए।
2021 में कठुआ में ड्रोन के जरिए हथियारों की तस्करी में भी उसकी भूमिका उजागर हुई थी। वह GPS गाइडेड हथियारों की डिलीवरी में सीमा पार लश्कर हैंडलरों का सहयोगी था।

2. एजाज अहमद: शिक्षक से हिजबुल का ओवरग्राउंड वर्कर
पुंछ जिले के निवासी एजाज अहमद, वर्ष 2011 से स्कूल शिक्षा विभाग में कार्यरत था। वह हिजबुल मुजाहिदीन के लिए ओवरग्राउंड वर्कर के तौर पर काम कर रहा था। नवंबर 2023 में उसे टोयोटा फॉर्च्यूनर में हथियार और आतंकी संगठन के पोस्टर के साथ गिरफ्तार किया गया।
जांच में सामने आया कि वह हिजबुल कमांडर आबिद रमजान शेख से लगातार संपर्क में था और घाटी में सक्रिय आतंकियों तक हथियार पहुंचाता था।
3. वसीम अहमद खान: मेडिकल कॉलेज कर्मचारी, आतंकी हमलों में मददगार
वसीम अहमद खान, जो 2007 से श्रीनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में कार्यरत था, को लश्कर और हिजबुल की गतिविधियों में सक्रिय मदद देने के आरोप में सेवा से हटाया गया है।
बटमालू आतंकी हमले और पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या की जांच में उसकी भूमिका उजागर हुई। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, उसने CRPF और J&K पुलिस पर हमलों, लक्षित हत्याओं, और आतंकियों के भागने में सहयोग दिया।
अब तक 80 से अधिक आतंकी मददगार बर्खास्त
एलजी मनोज सिन्हा द्वारा आतंकवाद के खिलाफ छेड़े गए इस निर्णायक अभियान में अब तक 80 से अधिक सरकारी अधिकारी और कर्मचारी सेवा से बर्खास्त किए जा चुके हैं। इनमें डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, तहसीलदार तक शामिल हैं। यह अभियान सरकारी तंत्र में छिपे व्हाइट कॉलर आतंकियों और जिहादियों के सफाए के लिए चलाया जा रहा है।

600 से अधिक कर्मचारियों की सूची तैयार
सूत्रों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने खुफिया एजेंसियों के सहयोग से अब तक 600 से अधिक ऐसे सरकारी कर्मचारियों की पहचान की है, जो आतंकी संगठनों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े हैं। प्रशासनिक व्यवस्था की आड़ में ये लोग अलगाववाद और आतंकवाद को मजबूत करने का प्रयास कर रहे थे।
एलजी मनोज सिन्हा की सख्त चेतावनी
उपराज्यपाल ने स्पष्ट किया है कि आतंकवाद के प्रति कोई सहानुभूति या सहयोग बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सरकारी तंत्र को आतंकियों से मुक्त करना उनकी प्राथमिकता है। यह कार्रवाई आने वाले समय में अन्य सहयोगियों पर भी गाज गिरने का संकेत है।