Monday, March 10, 2025
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कनाडा के नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी: जस्टिन ट्रूडो की जगह लेंगे, ट्रंप की नीतियों से निपटने की चुनौती

कनाडा: कनाडा की सत्तारूढ़ लिबरल पार्टी ने बैंक ऑफ कनाडा और बैंक ऑफ इंग्लैंड के पूर्व गवर्नर मार्क कार्नी को अपना नया नेता चुन लिया है। 59 वर्षीय कार्नी अब निवर्तमान प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की जगह लेंगे, जिन्होंने जनवरी 2025 में अपने पद से इस्तीफे की घोषणा की थी। लिबरल पार्टी की नेतृत्व दौड़ में कार्नी को 85.9 प्रतिशत वोट मिले, जो उनकी व्यापक स्वीकार्यता और लोकप्रियता को दर्शाता है। यह निर्णय ऐसे समय में आया है, जब कनाडा को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आक्रामक व्यापार नीतियों और टैरिफ की धमकियों का सामना करना पड़ रहा है।

मार्क कार्नी कौन हैं?

मार्क कार्नी का जन्म कनाडा के नॉर्थवेस्ट टेरिटरीज में हुआ और उनका बचपन एडमंटन में बीता। उन्होंने अपनी शिक्षा के लिए विश्व के प्रतिष्ठित संस्थानों का रुख किया। अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद, उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से मास्टर और 1995 में अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उनकी शैक्षिक पृष्ठभूमि और अर्थशास्त्र में गहरी समझ ने उन्हें वैश्विक मंच पर एक प्रभावशाली व्यक्तित्व बनाया।

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साल 2008 में उन्हें बैंक ऑफ कनाडा का गवर्नर नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान कनाडा की अर्थव्यवस्था को स्थिर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी इस उपलब्धि की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना हुई। 2010 में मशहूर मैगजीन TIME ने उन्हें विश्व के 25 सबसे प्रभावशाली नेताओं में शामिल किया, वहीं 2012 में यूरोमनी मैगजीन ने उन्हें “सेंट्रल बैंक गवर्नर ऑफ द ईयर” घोषित किया। इसके बाद 2013 में वे बैंक ऑफ इंग्लैंड के गवर्नर बने, जहां वे इस पद पर नियुक्त होने वाले पहले गैर-ब्रिटिश नागरिक थे। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने ब्रेक्सिट जैसे जटिल मुद्दों का भी सामना किया।

कई अहम जिम्मेदारियां संभाल चुके हैं कार्नी

मार्क कार्नी का करियर केवल केंद्रीय बैंकिंग तक सीमित नहीं रहा। 2020 में बैंक ऑफ इंग्लैंड से विदाई के बाद, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में जलवायु कार्रवाई और वित्त पर विशेष दूत के रूप में कार्य किया। इसके अलावा, वे ब्रुकफील्ड एसेट मैनेजमेंट में ट्रांजिशन इन्वेस्टिंग के प्रमुख रहे, जहां उन्होंने जलवायु परिवर्तन और स्थायी वित्त पर ध्यान केंद्रित किया। राजनीति में उनकी दिलचस्पी पुरानी है। 2012 में तत्कालीन कनाडाई प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर ने उन्हें वित्त मंत्री बनने का प्रस्ताव दिया था, जिसे कार्नी ने ठुकरा दिया। हालांकि, अब वे कनाडा के शीर्ष पद पर पहुंच गए हैं।

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जस्टिन ट्रूडो की विदाई: क्या बोले?

जस्टिन ट्रूडो ने जनवरी में इस्तीफे की घोषणा के बाद भी नए नेता के चयन तक प्रधानमंत्री पद पर बने रहने का फैसला किया था। लिबरल पार्टी के नेता पद से विदाई लेते हुए उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपनी भावनाएं साझा कीं। उन्होंने लिखा, “मैं लिबरल पार्टी के नेता के रूप में उसी आशा और कड़ी मेहनत के साथ विदा ले रहा हूं, जैसा कि मैंने शुरू में किया था। इस पार्टी और इस देश के लिए मुझे उम्मीद है, उन लाखों कनाडाई लोगों की वजह से जो हर दिन साबित करते हैं कि बेहतर हमेशा संभव है।”

ट्रूडो का कार्यकाल कई चुनौतियों से भरा रहा। खाद्य और आवास की बढ़ती कीमतों, आव्रजन के मुद्दों और अमेरिका के साथ तनावपूर्ण संबंधों ने उनकी लोकप्रियता को प्रभावित किया। ट्रंप द्वारा कनाडा को “51वां अमेरिकी राज्य” बनाने की बात और 25 प्रतिशत टैरिफ की धमकी ने ट्रूडो सरकार पर दबाव बढ़ाया, जिसके बाद उनके इस्तीफे का रास्ता साफ हुआ।

ट्रंप की नीतियों से असहमति

मार्क कार्नी ने कभी भी डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों का खुलकर विरोध नहीं किया, लेकिन उन्हें ट्रंप का आलोचक माना जाता है। अपने पहले संबोधन में कार्नी ने अमेरिका को स्पष्ट संदेश दिया, “अमेरिकियों को कोई गलतफहमी नहीं पालनी चाहिए। हॉकी की तरह, ट्रेड में भी कनाडा जीतेगा।” उन्होंने ट्रंप के टैरिफ को कनाडाई अर्थव्यवस्था पर हमला करार देते हुए कहा, “हम उन्हें सफल नहीं होने देंगे।” कार्नी का यह रुख दर्शाता है कि वे कनाडा की संप्रभुता और आर्थिक हितों की रक्षा के लिए कड़े कदम उठाने को तैयार हैं।

भारत-कनाडा संबंधों में सुधार की उम्मीद

जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल में भारत और कनाडा के बीच संबंधों में काफी तनाव देखा गया। खालिस्तान समर्थक नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में ट्रूडो के भारत पर लगाए गए आरोपों ने दोनों देशों के बीच कड़वाहट बढ़ा दी थी। हालांकि, मार्क कार्नी के नेतृत्व में इसमें सुधार की संभावना जताई जा रही है। हाल ही में कार्नी ने कहा था, “हमें भारत के साथ रिश्ते फिर से मजबूत करने चाहिए।” यह बयान भारत-कनाडा संबंधों के लिए एक सकारात्मक संकेत माना जा रहा है।

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