अजमेर, राजस्थान: अजमेर की ऐतिहासिक दरगाह, जो सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की समाधि के रूप में प्रसिद्ध है, एक बार फिर से विवाद के केंद्र में है। दरगाह के नीचे संकट मोचक महादेव मंदिर होने के दावे को लेकर अजमेर की सिविल अदालत ने याचिका स्वीकार कर ली है। अदालत ने सभी संबंधित पक्षों को नोटिस जारी करते हुए 20 दिसंबर को अगली सुनवाई की तारीख तय की है।
यह याचिका हिंदू सेवा के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने वकील शशि रंजन कुमार सिंह के माध्यम से दायर की थी। याचिका में दावा किया गया है कि दरगाह परिसर में प्राचीन शिव मंदिर स्थित है, जिसे मुगल शासन के दौरान क्षतिग्रस्त कर दिया गया था।
राजनीतिक हलचल तेज
अदालत के इस फैसले ने राजनीतिक बहस को हवा दे दी है। जहां भारतीय जनता पार्टी ने अदालत के फैसले का समर्थन किया है, वहीं विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने अदालत के सर्वेक्षण आदेश का समर्थन करते हुए कहा, “जब मुगल आए, तो उन्होंने हमारे मंदिरों को नष्ट कर दिया। अगर अदालत ने इस पर सर्वेक्षण का आदेश दिया है, तो इसमें कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।”
उधर, विपक्षी नेताओं ने भाजपा पर तुष्टिकरण और धार्मिक ध्रुवीकरण का आरोप लगाया। राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने सोशल मीडिया पर लिखा, “हम इस देश को कहां ले जा रहे हैं? और क्यों? सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए।”
पूजा स्थल अधिनियम और कानूनी प्रावधान
यह विवाद 1991 के पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम के दायरे में आता है, जिसके तहत 15 अगस्त 1947 की यथास्थिति बनाए रखने का कानून है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वेक्षण की अनुमति दी थी। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि पूजा स्थल अधिनियम किसी धार्मिक स्थल के चरित्र की पहचान करने से नहीं रोकता है।
अजमेर दरगाह का ऐतिहासिक महत्व
सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती, जिन्होंने 12वीं सदी में भारत में सूफीवाद की नींव रखी, ने अजमेर को अपना घर बनाया। मुगल सम्राट हुमायूं ने उनके सम्मान में दरगाह का निर्माण करवाया। बाद में, अकबर और शाहजहां ने दरगाह परिसर में मस्जिदें बनवाईं। यह स्थल आज भी हिंदू-मुस्लिम सांस्कृतिक समन्वय का प्रतीक माना जाता है।
अल्पसंख्यक समुदायों की चिंता
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस फैसले पर नाराजगी जताई। मुफ्ती ने कहा, “इस तरह के फैसलों से देश में विवाद और हिंसा बढ़ सकती है।” ओवैसी ने 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि इसे लागू करके संविधान का पालन सुनिश्चित किया जा सकता है।