Sunday, July 27, 2025
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अंधेरी वेस्ट में डी-मार्ट स्टोर पर मराठी भाषा को लेकर विवाद, मनसे कार्यकर्ताओं ने कर्मचारी को थप्पड़ मारा

मुंबई: देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में मराठी भाषा के मुद्दे पर विवाद और हिंसा की घटनाएं कोई नई बात नहीं हैं। इसी कड़ी में मंगलवार को अंधेरी वेस्ट के वर्सोवा इलाके में स्थित डी-मार्ट स्टोर में एक बार फिर ऐसा मामला सामने आया। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के कार्यकर्ताओं ने मराठी में बात न करने पर स्टोर के एक कर्मचारी को थप्पड़ मार दिया और चेतावनी दी कि भविष्य में दोबारा ऐसी हरकत न हो।

क्या है पूरा मामला?

सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो में देखा जा सकता है कि स्टोर का एक कर्मचारी एक ग्राहक से कहता है, “मैं मराठी में नहीं बोलूंगा, मैं केवल हिंदी में बात करूंगा। जो करना है कर लो।” इस टिप्पणी के बाद मामला तूल पकड़ गया और स्थानीय लोगों में नाराजगी फैल गई।

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मनसे कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया

घटना की जानकारी मिलते ही मनसे वर्सोवा इकाई के अध्यक्ष संदेश देसाई के नेतृत्व में पार्टी कार्यकर्ताओं का एक समूह डी-मार्ट स्टोर पहुंचा। संदेश देसाई ने स्टोर कर्मचारी से मराठी भाषा का अपमान करने के लिए माफी मांगने को कहा। जब कर्मचारी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया, तो गुस्साए कार्यकर्ताओं ने उसे थप्पड़ मार दिया।

कर्मचारी ने मांगी माफी

मनसे कार्यकर्ताओं के विरोध के बाद कर्मचारी ने सार्वजनिक रूप से माफी मांगी और आश्वासन दिया कि भविष्य में वह मराठी भाषा के प्रति सम्मान प्रदर्शित करेगा। कर्मचारी ने कहा कि वह मराठी लोगों को उनकी भाषा के आधार पर अपमानित नहीं करेगा और अपने व्यवहार के लिए खेद व्यक्त किया।

पुलिस का रुख

इस घटना के बाद पुलिस अधिकारियों ने बताया कि मामला शांत हो गया है और स्टोर कर्मचारी ने माफी मांग ली है। हालांकि, अभी तक इस मामले में कोई आधिकारिक शिकायत दर्ज नहीं की गई है।

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मराठी भाषा को लेकर बढ़ रहा विवाद

मुंबई में मराठी भाषा को लेकर विवाद लगातार गहराता जा रहा है। स्थानीय लोगों का मानना है कि शहर में हिंदी, मारवाड़ी, गुजराती और अन्य भाषाएं बोलने वालों की संख्या बढ़ने से मराठी भाषी लोगों को कई बार उपेक्षा और अपमान का सामना करना पड़ता है।

एबीपी माझा की रिपोर्ट के अनुसार, मराठी भाषी समुदाय का यह भी कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा मराठी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के बावजूद उसे अपेक्षित सम्मान नहीं मिल रहा है। इस असंतोष के चलते मनसे जैसे संगठन स्थानीय भाषाओं की रक्षा के लिए आक्रामक रुख अपनाते हैं।

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