नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच तनावपूर्ण संबंधों में नरमी के संकेत मिलते हुए चीन के उप विदेश मंत्री सुन वेइदोंग इस सप्ताह गुरुवार को दो दिवसीय भारत दौरे पर आ रहे हैं। इस दौरे के दौरान वे भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और विदेश सचिव स्तर के अधिकारियों से उच्च स्तरीय वार्ता कर सकते हैं।
यह दौरा इस साल का दूसरा बड़ा राजनयिक संवाद है। इससे पहले जनवरी 2025 में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री ने बीजिंग का दौरा किया था, जहां दोनों देशों के बीच सामान्य संबंध बहाली को लेकर कई अहम सहमतियां बनी थीं।

लद्दाख गतिरोध समाप्ति के बाद संबंधों में सुधार
पूर्वी लद्दाख में लगभग पांच साल तक चले सैन्य गतिरोध के बाद अब दोनों देशों ने एक-दूसरे के प्रति अपने रुख में लचीलापन दिखाया है। चीन के इस दौरे को उसी के विस्तार के रूप में देखा जा रहा है।
अक्टूबर 2024 में रूस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद सीमा वार्ता प्रक्रिया को फिर से शुरू किया गया था। इसके बाद दिसंबर 2024 में विशेष प्रतिनिधियों की बातचीत भी हुई, जिसने रिश्तों को नई दिशा दी।
कैलाश मानसरोवर यात्रा बहाल, सीमापार सहयोग बढ़ा
जनवरी में हुई बीजिंग वार्ता में भारत की एक अहम मांग मानी गई — कैलाश मानसरोवर यात्रा — को 2025 की गर्मियों से दोबारा शुरू करने पर सहमति बनी। यह एक अहम राजनयिक सफलता मानी जा रही है।
इसके अलावा, सीमापार नदी सहयोग, आपदा चेतावनी व्यवस्था, और पारिस्थितिकी संरक्षण जैसे क्षेत्रों में भी प्रगति हुई है। हालांकि, भारत-चीन के बीच सीधी उड़ानों को फिर से शुरू करने की प्रक्रिया अभी अधूरी है, बावजूद इसके “सैद्धांतिक सहमति” पहले ही बन चुकी है।
सितंबर में पीएम मोदी के चीन दौरे की चर्चा
सुन वेइदोंग के दौरे का एक अहम उद्देश्य जनवरी में हुई बातचीत की समीक्षा करना और आगे की रूपरेखा तैयार करना है। एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सितंबर 2025 में तियानजिन (चीन) में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया गया है। हालांकि पीएम मोदी की भागीदारी की अभी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
इससे पहले, विदेश मंत्री एस. जयशंकर द्वारा आयोजित मंत्रिस्तरीय बैठक में भारत की भागीदारी संभावित है।
रणनीतिक स्तर पर संवाद, व्यापार और आपसी विश्वास पर जोर
चीन के उप विदेश मंत्री के दौरे में रणनीतिक, सैन्य और राजनयिक मुद्दों के अलावा आर्थिक साझेदारी, व्यापार में पारदर्शिता, और जन-संपर्क संवाद पर भी चर्चा हो सकती है।

भारत इस बात पर जोर देगा कि थिंक टैंक, मीडिया और शैक्षणिक संवादों को दोबारा सक्रिय किया जाए, ताकि दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास बहाल हो और गलतफहमी को समय रहते सुलझाया जा सके।
विश्लेषण: एशिया में नई स्थिरता की उम्मीद?
इस दौरे को भारत और चीन के सीमित लेकिन महत्वपूर्ण मेल-मिलाप प्रयासों के रूप में देखा जा रहा है। भारत-पाकिस्तान संबंधों को इस प्रक्रिया से अलग रखने की नीति बताती है कि भारत बहुपक्षीय राजनयिक चैनलों में संवेदनशील मुद्दों को अलग-अलग करके देख रहा है, ताकि प्रगति की संभावनाएं बनी रहें।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह दौरा केवल प्रतीकात्मक नहीं बल्कि सुविचारित रणनीतिक कदम है, जो एशिया में दीर्घकालिक स्थिरता के लिए जरूरी है।