Thursday, June 19, 2025
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ISRO की ऐतिहासिक उपलब्धि: 3 मीटर की दूरी पर पहुंचे दोनों सैटेलाइट्स, डॉकिंग की तैयारी

नई दिल्ली: भारत अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में जल्द ही एक नया कीर्तिमान स्थापित करने जा रहा है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (SpaDeX) मिशन के तहत दो उपग्रह SDX01 (चेजर) और SDX02 (टारगेट) को करीब लाया गया है। शनिवार को दोनों सैटेलाइट्स के बीच की दूरी 230 मीटर थी, जिसे 15 मीटर और फिर 3 मीटर तक घटाया गया। अब डॉकिंग प्रक्रिया को पूर्ण करने के लिए डेटा का विश्लेषण किया जा रहा है। इन उपग्रहों को सुरक्षित दूरी पर वापस ले जाया गया है, और डॉकिंग की अगली प्रक्रिया जल्द शुरू होगी।

अंतरिक्ष में पहली बार स्पेस डॉकिंग तकनीक का प्रदर्शन

स्पेडेक्स मिशन का मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष में डॉकिंग तकनीक को प्रदर्शित करना है। यह तकनीक अंतरिक्ष में भविष्य के मिशनों जैसे अंतरिक्ष स्टेशन निर्माण और चंद्रयान-4 की सफलता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होगी। इस मिशन में एक उपग्रह दूसरे उपग्रह को पक’ड़ेगा और डॉकिंग करेगा, जिससे ऑर्बिट में सैटेलाइट सर्विसिंग और रीफ्यूलिंग की प्रक्रिया भी संभव हो सकेगी।

इसरो ने 30 दिसंबर को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से PSLV-C60 रॉकेट की सहायता से स्पेडेक्स मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया था। दोनों उपग्रहों का वजन लगभग 220 किलोग्राम है।

चंद्रयान-4 के लिए क्यों अहम है स्पेडेक्स मिशन?

स्पेडेक्स मिशन की सफलता भारत के चंद्रयान-4 मिशन और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण के लिए मील का पत्थर साबित होगी। इसरो स्पेस डॉकिंग तकनीक के सफल प्रदर्शन के साथ ऐसा करने वाला विश्व का चौथा देश बन गया है। चंद्रयान-4 मिशन में इसी डॉकिंग-अनडॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा।

इस तकनीक से भविष्य में नासा की तरह भारत भी अपना अंतरिक्ष स्टेशन बना सकेगा। सैटेलाइट सर्विसिंग, इंटरप्लेनेटरी मिशन और इंसानों को चंद्रमा पर भेजने जैसे अभियानों में यह तकनीक बेहद आवश्यक होगी।

तकनीकी चुनौतियां और सफलता की ओर बढ़ता भारत

स्पेडेक्स मिशन के तहत इसरो ने भारतीय ग्राउंड स्टेशनों से सिग्नल प्राप्त करने का इंतजार किया। प्रारंभ में डॉकिंग की तारीख 7 जनवरी निर्धारित की गई थी, लेकिन तकनीकी समस्याओं के कारण इसे 9 जनवरी तक स्थगित किया गया। इस मिशन के दौरान इसरो को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों और कुशल तकनीकी प्रबंधन से यह महत्वपूर्ण पड़ाव हासिल किया गया।

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