नई दिल्ली। चीन की कर्ज नीति को लेकर एक नई रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने दुनिया के 75 सबसे गरीब और कमजोर देशों को इतना अधिक कर्ज दे दिया है कि अब वे गंभीर आर्थिक संकट की ओर बढ़ रहे हैं। इन देशों पर इस वर्ष अकेले 22 अरब डॉलर से अधिक की कर्ज किस्त चुकाने का दबाव है, जो उन्हें बीजिंग को लौटानी है।
यह जानकारी ऑस्ट्रेलिया स्थित विदेश नीति थिंक टैंक ‘लोवी इंस्टीट्यूट’ द्वारा प्रकाशित विश्लेषण में दी गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन अब सिर्फ विकासशील देशों का साझेदार नहीं, बल्कि एक सख्त कर्ज वसूली करने वाला बन गया है, जो अपने हितों की पूर्ति के लिए दबाव बना रहा है।
बेल्ट एंड रोड परियोजना के तहत हुआ कर्ज का विस्तार
चीन ने यह अधिकांश कर्ज ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) के तहत दिया है। इस परियोजना की शुरुआत 2013 में की गई थी, जिसका उद्देश्य एशिया, अफ्रीका और अन्य विकासशील क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का विस्तार करना था। इसके तहत चीन ने सड़कों, बंदरगाहों, हवाई अड्डों, स्कूलों, बिजलीघरों और रेलवे परियोजनाओं के निर्माण के लिए अरबों डॉलर की फंडिंग की।
हालांकि, रिपोर्ट बताती है कि ये ऋण बहुत अधिक ब्याज दरों पर दिए गए, जिससे संबंधित देश अब उसे चुकाने में असमर्थ हो रहे हैं। इस तरह चीन ने धीरे-धीरे इन देशों को कर्ज के जाल में फंसा लिया है।
रणनीतिक नियंत्रण की आशंका
विश्लेषकों का मानना है कि चीन केवल आर्थिक मदद के नाम पर यह कर्ज नहीं दे रहा, बल्कि इसका मकसद रणनीतिक वर्चस्व स्थापित करना भी हो सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की यह कर्ज नीति उसे अब दुनिया के कई हिस्सों में प्रभावशाली स्थिति में ले जा रही है।
एक उल्लेखनीय उदाहरण श्रीलंका का हम्बनटोटा बंदरगाह है, जिसे ऋण चुकाने में असफल रहने पर श्रीलंका को चीन को 99 साल की लीज पर देना पड़ा। इसी तरह, पाकिस्तान, ज़ाम्बिया, लाओस जैसे देशों की अर्थव्यवस्थाएं भी अब भारी चीनी कर्ज तले दबी हुई हैं।
चीन बना सबसे बड़ा कर्जदाता
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि चीन अब दुनिया का सबसे बड़ा कर्जदाता बन चुका है। वर्ष 2016 में चीन का बाहरी कर्ज 50 अरब डॉलर के पार चला गया था, जो कई पश्चिमी देशों द्वारा दिए गए संयुक्त कर्ज से भी अधिक था।
AidData जैसी अन्य रिपोर्टों में यह भी खुलासा हुआ है कि चीन के सरकारी बैंक और एजेंसियां अब तक करीब 385 अरब डॉलर से अधिक की धनराशि दुनिया भर में उधार दे चुकी हैं।
लोवी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट एक बार फिर चीन की विदेश नीति पर सवाल उठाती है। भले ही BRI के जरिए विकासशील देशों में आधारभूत संरचना विकसित की जा रही हो, लेकिन कर्ज चुकाने की अक्षम स्थिति ने इन देशों को आर्थिक असंतुलन और राजनीतिक निर्भरता की ओर धकेल दिया है। रिपोर्ट यह भी संकेत देती है कि आने वाले वर्षों में चीन की भूमिका साझेदार से अधिक वसूलकर्ता की होगी, और यह वैश्विक आर्थिक संतुलन के लिए चिंता का विषय बन सकता है।