अलीगढ़, उत्तर प्रदेश: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक स्वरूप को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपना महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने 1967 के एस अज़ीज बाशा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले को 4:3 के अंतर से खारिज कर दिया। इस मामले में कहा गया था कि चूंकि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के संबंध में निर्णय अब एक नियमित बेंच द्वारा लिया जाएगा।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का इतिहास
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक स्वरूप एक विवादित मुद्दा रहा है, जिसे 1965 से लेकर अब तक अदालतों में रखा गया है। 1965 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने एएमयू एक्ट में संशोधन कर विश्वविद्यालय की स्वायत्तता को समाप्त कर दिया था। इस बदलाव के खिलाफ अजीज बाशा ने 1968 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। 1972 में इंदिरा गांधी सरकार ने भी यह माना कि एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में नहीं देखा जा सकता था। इसके बाद विश्वविद्यालय में इस निर्णय का विरोध हुआ, और 1981 में सरकार ने एएमयू एक्ट में संशोधन कर इसे अल्पसंख्यक संस्थान मान लिया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का विवादास्पद निर्णय
2006 में, एएमयू के जेएन मेडिकल कॉलेज में मुस्लिम छात्रों के लिए 50 प्रतिशत सीट आरक्षित करने के खिलाफ हिंदू छात्रों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसके बाद एएमयू ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की, और तब से यह मामला अदालत में विचाराधीन है।
सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 1967 के एस अज़ीज बाशा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले को खारिज कर दिया, जिसमें यह कहा गया था कि एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि यह एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है। कोर्ट ने कहा कि अब इस मुद्दे पर एक नियमित बेंच द्वारा सुनवाई की जाएगी, जो अंतिम निर्णय लेगा।
एएमयू में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ी
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर एएमयू और शहर भर में सुरक्षा व्यवस्था को चौकस किया गया था। पुलिस अधिकारियों ने गुरुवार रात तक विश्वविद्यालय के सभी प्रवेश द्वारों पर चेकिंग की। इसके अलावा, तीन दिन पहले ही जिला मजिस्ट्रेट और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने विश्वविद्यालय के कुलपति के साथ बैठक कर इस फैसले से संबंधित सभी सुरक्षा पहलुओं पर चर्चा की थी। विश्वविद्यालय और शहर में स्थिति को सामान्य बनाए रखने के लिए पुलिस ने पूरी सतर्कता बरती।