नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वकील विशाल तिवारी द्वारा दायर की गई एक याचिका खारिज कर दी, जिसमें तीन नए आपराधिक कानूनों – भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), भारतीय नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम – को चुनौती दी गई थी। 2023 में संसद द्वारा पारित किए गए इन कानूनों को 1 जुलाई 2024 से लागू किया जाना है।
याचिका में मुख्य मुद्दे
- विसंगतियां: याचिका में दावा किया गया था कि नए कानूनों में कई खामियां और विसंगतियां हैं।
- अप्रचलित प्रक्रिया: याचिका में यह भी आरोप लगाया गया था कि इन कानूनों को संसद में उचित बहस के बिना पारित कर दिया गया था, जब विपक्षी सांसद निलंबित थे।
- कठोर दंड: याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि नए कानून अत्यधिक कठोर हैं और इससे “पुलिस का राज” स्थापित हो जाएगा।
- मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: याचिका में यह भी दावा किया गया था कि ये कानून देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।
- अंग्रेजी कानूनों से अधिक कठोर: याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया था कि नए कानून अंग्रेजी कानूनों से भी कठोर हैं।
- पुलिस हिरासत: याचिका में कहा गया था कि नए कानून पुलिस हिरासत की अवधि को 15 दिनों से बढ़ाकर 90 दिन कर देते हैं, जो “अनुचित” है।
याचिका का निपटान
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी, यह कहते हुए कि याचिकाकर्ता का इस मामले में पक्षकार होने का कोई आधार नहीं है। याचिकाकर्ता ने भी बाद में याचिका वापस ले ली।
नए कानूनों के बारे में
नए कानून देश के आपराधिक न्याय प्रणाली में कई महत्वपूर्ण बदलाव लाते हैं। इनमें शामिल हैं:
- देशद्रोह कानून का कड़ा होना: नए कानून में देशद्रोह के लिए उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है।
- इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य: नए कानून इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों को अधिक स्वीकार्य बनाते हैं।
- जमानत: नए कानून कुछ अपराधों के लिए जमानत के नियमों को कड़ा करते हैं।
- संपत्ति कुर्क करने की प्रक्रिया: नए कानून अपराधियों से संपत्ति कुर्क करने की प्रक्रिया को आसान बनाते हैं।
विवाद:
नए कानूनों को लेकर कानूनी विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं के बीच मिश्रित प्रतिक्रियाएं आई हैं। कुछ का मानना है कि ये कानून अपराधों को कम करने और न्याय प्रणाली को अधिक कुशल बनाने में मदद करेंगे, जबकि अन्य का मानना है कि ये कानून मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हैं और पुलिस को बहुत अधिक शक्ति देते हैं।