नई दिल्ली, 11 जुलाई 2024: सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं भी CrPC की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता प्राप्त करने की हकदार होंगी। यह फैसला 1985 में शाहबानो मामले में दिए गए फैसले के समान है, जिसे बाद में ‘मुस्लिम महिला (तलाक के अधिकारों पर संरक्षण) अधिनियम, 1986’ द्वारा पलट दिया गया था।
इस फैसले के बाद मुस्लिम समुदाय में विभाजित प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। जमीयत उलेमा-ए-हिंद, एक प्रमुख मुस्लिम संगठन, ने इस फैसले पर रिव्यू पिटीशन दायर करने के लिए 11 जुलाई को लीगल टीम की बैठक बुलाई है।
मुस्लिम संगठनों का विरोध
कई मुस्लिम मौलवी और संगठनों ने इस फैसले का विरोध करते हुए कहा है कि यह शरिया कानून का उल्लंघन है और पुरुषों के साथ अन्याय है।
झारखंड के काजी मौलाना मोहम्मद मसूद फरीदी ने कहा, “तलाक के बाद मेंटेनेंस का कोई मसला नहीं बनता। शरिया में तलाक के बाद कुछ नहीं बचता, तो पहले वाली को पैसा कैसे देगा? दूसरी बीवी को कहां से देगा?”
कोलकाता की नाखोड़ा मस्जिद के इमाम मौलाना शफीक कासमी ने कहा, “शरिया के कानून के अनुसार तलाक के बाद पति को ‘मेहर’ देना होता है। गुजारा भत्ता इस्लामी शरिया के खिलाफ है।”
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
इस फैसले पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी मिली-जुली रही हैं। समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक एसटी हसन ने कहा, “गुजारा भत्ता उस महिला के लिए जायज है जिसके पति ने दूसरी शादी के लिए तलाक दिया हो। लेकिन अगर कोई महिला किसी और के साथ चली गई हो, तो उसे भत्ता कैसे दिया जा सकता है?”
वहीं, देवबंद के मुफ्ती असद कासमी देवबंदी ने कहा, “यह हमारे इस्लाम में पहले से चला आ रहा है। निकाह के समय ‘मेहर’ 5 लोगों की मौजूदगी में तय होता है। तलाकशुदा महिलाओं के मामले में हम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं। इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।”
अगली क्या रणनीति?
यह देखना बाकी है कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद इस फैसले पर क्या रणनीति बनाती है। क्या वे रिव्यू पिटीशन दायर करेंगे या फिर इस फैसले को मान लेंगे?
यह फैसला निश्चित रूप से भारत में मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों और शरिया कानून की व्याख्या को लेकर बहस को जन्म देगा।