नई दिल्ली: देश के सबसे बड़े स्कूल बोर्ड, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने स्कूली शिक्षा में ऐतिहासिक बदलाव की ओर कदम बढ़ाया है। एक नए सर्कुलर के तहत सभी सीबीएसई एफिलिएटेड स्कूलों को जुलाई 2025 से पहले छात्रों की मातृभाषा की पहचान और मैपिंग पूरी करने के निर्देश दिए गए हैं। यह पहल राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या फ्रेमवर्क फॉर स्कूल एजुकेशन (NCFSE) 2023 के तहत प्रारंभिक शिक्षा को मातृभाषा में देने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।

क्या कहता है नया सर्कुलर?
CBSE द्वारा 22 मई 2025 को जारी सर्कुलर में कहा गया है कि:
- प्री-प्राइमरी से कक्षा 2 तक की पढ़ाई छात्रों की घरेलू भाषा, मातृभाषा या परिचित क्षेत्रीय भाषा में करवाई जानी चाहिए।
- इस भाषा को ‘R1’ कहा गया है और यह आदर्श रूप से मातृभाषा होनी चाहिए।
- कक्षा 3 से 5वीं तक छात्र ‘R1’ में पढ़ाई जारी रख सकते हैं या किसी अन्य माध्यम का विकल्प चुन सकते हैं।
- सभी स्कूलों को मई के अंत तक एक ‘NCF कार्यान्वयन समिति’ बनानी होगी जो भाषा संसाधनों का मूल्यांकन और भाषा मैपिंग का कार्य करेगी।
NEP 2020 और NCFSE 2023 में मातृभाषा का महत्व
NEP 2020 और NCFSE 2023 के अनुसार:
“बच्चे अपनी घरेलू भाषा में सबसे तेजी से और गहराई से कॉन्सेप्ट को समझते हैं।“
“इसलिए फाउंडेशनल स्टेज (3 से 8 वर्ष की उम्र) तक निर्देश की प्राथमिक भाषा बच्चे की मातृभाषा/घरेलू भाषा/परिचित भाषा होनी चाहिए।“
यह दिशा-निर्देश शिक्षा में समावेशिता और बौद्धिक विकास के लिए मातृभाषा को केंद्रीय भूमिका देने का प्रयास है।

क्या है ‘भाषा मैपिंग’?
भाषा मैपिंग का तात्पर्य है स्कूलों द्वारा यह पता लगाना कि उनके छात्रों की मातृभाषा कौन सी है। इसके आधार पर शिक्षण सामग्री और शिक्षकों की व्यवस्था की जाएगी। यह प्रक्रिया खासतौर पर उन स्कूलों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है जहां छात्रों की भाषिक विविधता अधिक है।
भारत में सीबीएसई का नेटवर्क
- 30,000+ स्कूल सीबीएसई से एफिलिएटेड
- इनमें से अधिकांश स्कूलों में अंग्रेज़ी प्राथमिक शिक्षण माध्यम है
- अब इन स्कूलों को स्थानीय भाषाओं में शिक्षण के लिए खुद को ढालना होगा