पिलानी, 03 अक्टूबर : सीएसआईआर-सीरी (CSIR-CEERI) में 3 से 5 अक्टूबर तक “औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए टेराहर्ट्ज़ प्रौद्योगिकी” विषय पर आयोजित की जा रही तीन-दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का आज शुभारंभ हुआ। कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में बिट्स पिलानी के इमेरिटस प्रोफेसर एवं सीरी के पूर्व निदेशक प्रो. चंद्रशेखर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। साथ ही विशिष्ट अतिथि के रूप में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेन्टल रिसर्च के प्रो. गणेश प्रभु, गोयथे यूनिवर्सिटी, फ्रेंकफर्ट, जर्मनी के प्रो. हार्टमुट रॉस्कॉस तथा साकिब शेख उपस्थित थे।
भारतीय और जर्मन वैज्ञानिकों के बीच प्रभावी जानकारी के आदान-प्रदान और भविष्य में इस चुनौतीपूर्ण तकनीक के क्षेत्र में संयुक्त रूप से शोध एवं विकास के लिए सहयोग को मजबूत करने के उद्देश्य से कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। कार्यशाला में जर्मनी एवं भारत के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों एवं शोध संस्थानों से शिक्षाविद एवं वैज्ञानिक तथा शोधार्थी सम्मिलित हुए। उद्घाटन सत्र के दौरान अतिथियों ने कार्यशाला की स्मारिका (एब्सट्रैक्ट बुक) का भी विमोचन किया।
मुख्य अतिथि प्रोफेसर चंद्रशेखर ने अपने संबोधन में टेराहर्ट्ज टेक्नोलॉजी को इलेक्ट्रोमेग्नेटिक्स का अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र बताते हुए स्पेक्ट्रोस्कोपी, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में इसकी असीम संभावनाओं पर प्रकाश डालते हुए इसके महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने ऐसे शैक्षणिक एवं शोध समागमों के नियमित रूप से आयोजन पर बल दिया। अपने संबोधन में विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर गणेश प्रभु एवं प्रोफेसर हार्टमुट रॉस्कॉस ने भी महत्वपूर्ण विषय पर इस कार्यशाला के आयोजन पर डॉ. पंचारिया, डॉ. नीरज और उनकी टीम की सराहना की। इस अवसर पर साक़िब शेख़ ने भारत एवं जर्मनी के बीच शोध एवं विकास सहयोग की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह वर्ष दोनों देशों के बीच परस्पर सहयोग का स्वर्ण जयंती वर्ष है।
इससे पूर्व डॉ. पीसी पंचारिया ने अतिथियों का औपचारिक स्वागत करते हुए उन्हें संस्थान के प्रमुख शोध क्षेत्रों से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि इस कार्यशाला के माध्यम से दोनों देशों के बीच वैज्ञानिक सहयोग को बढ़ावा मिलेगा, जिससे वैश्विक स्तर पर इस अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र में हो रहे प्रयासों के साथ तालमेल स्थापित करने में मदद मिलेगी।
आयोजन समिति के अध्यक्ष मुख्य वैज्ञानिक डॉ अनिर्बान बेरा ने कार्यशाला के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। तीन-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला के भारतीय संयोजक प्रधान वैज्ञानिक डॉ नीरज कुमार ने कार्यशाला के तकनीकी सत्रों की विस्तृत जानकारी दी।