अमृतसर, पंजाब: शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के इतिहास में एक अहम मोड़ तब आया जब लंबे समय से अध्यक्ष पद संभाल रहे सुखबीर सिंह बादल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। यह फैसला श्री अकाल तख्त द्वारा उन्हें तनखैया घोषित किए जाने और पार्टी के भीतर बढ़ते दबाव के चलते लिया गया। सुखबीर बादल 2007 से 2017 तक पंजाब में भाजपा के साथ गठबंधन कर एक सशक्त सरकार चलाने के लिए जाने जाते हैं। हालांकि, उनके कार्यकाल के दौरान श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी, डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को माफी देने, और सुमेध सैनी को डीजीपी नियुक्त करने जैसे विवादित फैसलों ने उनकी राजनीतिक छवि को गहरा नुकसान पहुंचाया।
शिरोमणि अकाली दल: सिमटते जनाधार का दौर
2017 के विधानसभा चुनावों में, बेअदबी की घटनाओं और बरगाड़ी गोलीकांड में दो प्रदर्शनकारियों की मौत के बाद पार्टी को भारी जनाक्रोश का सामना करना पड़ा। पार्टी का जनाधार 59 सीटों से घटकर 15 सीटों तक सिमट गया। 2022 के चुनावों में यह स्थिति और भी खराब हो गई। इस पर विचार करने के लिए पूर्व विधायक इकबाल सिंह झूंदा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया।
कमेटी ने पार्टी के सभी पदाधिकारियों को अपने पद छोड़ने की सिफारिश की। हालांकि, सुखबीर बादल ने न तो इस्तीफा दिया और न ही रिपोर्ट सार्वजनिक की। इससे पार्टी के अंदर मतभेद गहराते गए और कई वरिष्ठ नेता पार्टी से अलग हो गए।
श्री अकाल तख्त द्वारा तनखैया घोषित
30 अगस्त 2024 को श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघुबीर सिंह ने सुखबीर बादल को तनखैया घोषित कर दिया। हालांकि, उन्हें धार्मिक सजा सुनाई जानी अभी बाकी है। हाल ही में, उन्होंने श्री अकाल तख्त साहिब पर पेश होकर अपनी गलतियों को स्वीकार किया और उनके लिए सजा की मांग की।
शिअद के इतिहास में नया अध्याय
1920 में स्थापित शिरोमणि अकाली दल ने अब तक 20 अध्यक्ष देखे हैं। इनमें बाबा खड़क सिंह, मास्टर तारा सिंह, संत हरचंद सिंह लौंगोवाल, प्रकाश सिंह बादल जैसे प्रमुख नेता शामिल रहे हैं। अब पार्टी के भीतर एक युवा नेतृत्व की मांग जोर पकड़ रही है। एसजीपीसी की पूर्व अध्यक्ष बीबी जागीर कौर ने कहा कि सुखबीर बादल का इस्तीफा एक देरी से उठाया गया कदम है, जिससे पार्टी को भारी नुकसान हुआ है।
भविष्य की रणनीति और संभावनाएं
बीबी जागीर कौर ने यह भी सुझाव दिया कि पार्टी को नए सिरे से सदस्यता अभियान चलाकर युवाओं को जोड़ना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अब समय आ गया है कि अकाली दल की कमान किसी युवा नेता के हाथों सौंपी जाए।
शिरोमणि अकाली दल में यह नेतृत्व परिवर्तन पार्टी के भविष्य के लिए एक नई दिशा तय कर सकता है। अब यह देखना होगा कि पार्टी किसे अपना अगला अध्यक्ष चुनती है और किस तरह से अपने जनाधार को फिर से मजबूत करती है।