लखनऊ, उत्तर प्रदेश: अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का बुधवार को लखनऊ स्थित संजय गांधी पीजीआई अस्पताल में निधन हो गया। अस्पताल द्वारा इसकी पुष्टि की गई है। वह पिछले कुछ दिनों से ब्रेन स्ट्रोक के कारण इलाज करा रहे थे और उनकी हालत में लगातार उतार-चढ़ाव हो रहा था। उन्हें 3 फरवरी को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उनका इलाज किया जा रहा था।
3 फरवरी को हुआ था भर्ती
आचार्य सत्येंद्र दास को ब्रेन स्ट्रोक के बाद संजय गांधी पीजीआई अस्पताल के न्यूरोलॉजी वॉर्ड एचडीयू में भर्ती कराया गया था। इसके साथ ही उनकी डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर की समस्या भी बढ़ गई थी, जिससे उनकी स्थिति नाजुक हो गई थी। डॉक्टरों की निगरानी में उनका इलाज जारी था।

15 अक्टूबर को भी हुआ था अस्पताल में भर्ती
इससे पहले, 15 अक्टूबर को भी आचार्य सत्येंद्र दास की हालत बिगड़ने पर उन्हें पीजीआई के न्यूरोलॉजी विभाग में भर्ती किया गया था। वह अयोध्या से लाकर अस्पताल में भर्ती किए गए थे, जहां उनकी जांचें कराई गई थीं। हालांकि, कुछ दिन के इलाज के बाद उनकी स्थिति में सुधार हुआ और उन्हें अयोध्या वापस भेज दिया गया था।
9 फरवरी को बिगड़ी थी फिर से तबीयत
रविवार 9 फरवरी को उनकी तबीयत फिर से बिगड़ गई थी। उनका ब्लड प्रेशर अचानक काफी बढ़ गया, जिसके बाद उन्हें त्वरित इलाज के लिए अस्पताल लाया गया। चिकित्सकों ने उनकी स्थिति को गंभीर बताते हुए लखनऊ रेफर कर दिया। लखनऊ में इलाज के दौरान उनकी हालत स्थिर नहीं हो पाई और अंतत: बुधवार को उनका निधन हो गया।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लिया था हालचाल
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 4 फरवरी को अस्पताल पहुंचकर आचार्य सत्येंद्र दास के स्वास्थ्य की जानकारी ली थी। उन्होंने डॉक्टरों से उनकी हालत और इलाज की प्रगति पर चर्चा की और आवश्यक दिशा-निर्देश दिए थे। मुख्यमंत्री ने उनके स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना की थी और राज्य सरकार की तरफ से हर संभव मदद का आश्वासन दिया था।

पार्थिव शरीर अयोध्या के लिए रवाना
आचार्य सत्येंद्र दास का पार्थिव शरीर बुधवार को अयोध्या के लिए रवाना कर दिया गया है। अयोध्या में उनके अंतिम संस्कार की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। उनके निधन से श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के कर्मचारियों, भक्तों और अयोध्या वासियों में शोक की लहर है। आचार्य सत्येंद्र दास ने श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में पूजा-अर्चना और धार्मिक कार्यों का नेतृत्व किया था, और उन्हें एक महान धार्मिक गुरु के रूप में सम्मानित किया जाता था।