नई दिल्ली: राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर देश की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। विपक्ष के इस कदम को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने इस प्रस्ताव को बेबुनियाद बताते हुए विपक्ष पर तीखा हमला बोला है।
संसदीय कार्य मंत्री का बयान
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने विपक्ष के इस कदम को नकारात्मक राजनीति करार दिया। उन्होंने कहा, “राज्यसभा में एनडीए के पास स्पष्ट बहुमत है। यह अविश्वास प्रस्ताव पहले ही असफल हो चुका है। हम सुनिश्चित करेंगे कि ऐसे कार्यों को स्वीकार न किया जाए।”
जयराम रमेश के आरोप
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू पर गंभीर आरोप लगाए। समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए उन्होंने कहा, “सरकार दोनों सदनों को चलाना नहीं चाहती। रिजिजू ने स्वयं कहा था कि जब तक विपक्ष लोकसभा में अदाणी का मुद्दा उठाएगा, राज्यसभा को सुचारू रूप से नहीं चलने दिया जाएगा।”
रमेश ने आगे कहा कि “राज्यसभा में विपक्ष को बार-बार नजरअंदाज किया जा रहा है, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। सरकार घबराई हुई है और विपक्ष की आवाज को दबाने की कोशिश कर रही है।”
पहली बार सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव
यह पहली बार है जब राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है। इस प्रस्ताव पर 60 सांसदों के हस्ताक्षर हैं। मानसून सत्र के दौरान भी विपक्षी दलों ने इस तरह का प्रस्ताव लाने पर विचार किया था, लेकिन इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था।
संविधान और नियमों के प्रावधान
संविधान के अनुच्छेद 67B के अनुसार, राज्यसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 50 सांसदों के समर्थन की आवश्यकता होती है। प्रस्ताव पर चर्चा के लिए इसे 14 दिन पहले नोटिस देना जरूरी होता है। यदि यह प्रस्ताव राज्यसभा में पारित हो जाता है, तो इसे लोकसभा में भेजा जाता है।
विपक्ष का समर्थन और बीजेडी की दूरी
कांग्रेस द्वारा शुरू किए गए इस अविश्वास प्रस्ताव को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), आम आदमी पार्टी (आप), राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) का समर्थन प्राप्त है। हालांकि, बीजू जनता दल (बीजेडी) ने इस प्रस्ताव से दूरी बना ली है।
संख्याबल का गणित
राज्यसभा में विपक्ष के पास फिलहाल 103 सीटें हैं, जबकि प्रस्ताव को पारित कराने के लिए 126 सांसदों के समर्थन की आवश्यकता होगी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह प्रस्ताव पारित होने की संभावना कम है और इसे विपक्ष द्वारा प्रतीकात्मक विरोध के तौर पर देखा जा रहा है।